Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पिण दोष नहीं। अनै ते जीत ववहार में पाछला ने दोष भ्यासै तो छोड़ देणो। आगे निर्दोष जाण ने सेव्यो त्यां ने दोष न कहिणो। तथा रामचरित्र रे छेहड़े दूहा स्वामीजी जोठ्या तिहां एहवो कह्यो
दूहा "बले परंपरा नी बात ने, मिलतो देखी न्यायो। सुध जाणो तो मानजो, झूठ दीजो छिटकाय ।।"
अथ इहां पिण जीत ववहार में परंपरा नी बात सुध जाणो तो मानणी कही। असुद्ध जाण्या पछै छोड़ देणी कही। तथा सुयगडायंग श्रुतस्कंध दूजो अध्ययन पांचमा में एहवी गाथा कही
अहाकम्माणि भुंजंति, 'अण्णमण्णस्स कम्मुणा'। उवलित्ते त्ति जाणिज्जा, अणुवलित्ते,त्ति वा पुणो।। एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारी ण विज्जई। एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं विजाणए।
(सुयगडो २ अ० ५ गाथा ८,९) अथ इहां पिण कह्यो-'आधाकर्मी पिण सुध ववहार में निर्दोष जाणी ने भोगवै तो पाप कर्मे करि न लिपावै। तिम आचार्य बुद्धिवंत साधु आपणा ववहार में निर्दोष जाणी ने जीत व्यवहार थापे तिण में पिण दोष न कहिणो। तथा भगवती, ठाणांग, ववहार सूत्र में पांच ववहार कह्या ते पाठ
कतिविहे णं भंते! ववहारे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा आगमे, सुतं, आणा, धारणा. जीए।
जहा से तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। णो य से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेज्जा।
णो य से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
णो य से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
णो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पट्ठवेज्जा, तं जहा
१. साधु के निमित्त बनाया हुआ।
पंरपरा नी जोड़ : ढा०१ : ३३३