Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१७ आर्यां में दीक्षा देणी पिण चाली, प्रायश्चित देइ में सुध पिण करणी।
ववहार सूत्र रे सातमें उद्देशै, ऊभो न रहणो तो दंड दीक्षा किम वरणी।। पेहला छेहला पोहर विण ओर काळ में, सूत्र कालिक री न करणी सझाय।
साधु री नेश्राय आर्यां ने कल्पै, सातमों उद्देशो ववहार मांय।। __ आर्यां रे स्थानक साधु जाये तो, खंखारादिक किया विण नही जांणो।
सूत्र नशीथरे उद्देशे चोथे तिण सूं, विकट वेळा रो अर्थ सुध पिछाणो।। असझाइ साधु रे तथा साध्वी रे, ववहारे कह्यो वांचणी देणी माहोमांय। ऊभो रह्यां विण वाचणी किम देवै, विकट बेला रो अर्थ मिलतो इण न्याय।। साधु रे स्थानके साध्वी ने बेसणो, ए पिण ववहार सातमा उद्देशा मांय। ते उभो रह्या बिन किम दिने बेसणो, विकट बेला रो अर्थ साचो इण न्याय।। उदक तीर साधु साध्वियां ने, ए सतरे बोल वरज्या जिनराय।
वृहत्कल्प रे पहिले उद्देशै, ए तीर पाणी स्यूं निकट कहिवाय।। २३ उदक तीर ऊभो रहणो कह्यो छ, आचांरंग' तीजे अध्ययन रे दूजे उद्देश।
ए तीर पाणी सू दूर जाणवो, दूजे आचारंग पाठ में रेस ।। २४ तिम सतरह बोल साधु रे स्थानक समणी ने, वा ते विकट वेला आसरी जाण।
सझाय बेसण ने आहार नी आज्ञा, अविकट वेला रो पाठ पिछाण ।।
(१५. रात री आर्या ने नेरी उतारे) । २५ आर्यां साधां सूं नेडी उतरे, तिण मांहे दोष कहे छै अजाण ।
ते किण ही सूत्र मांही वौँ नही छै, पिण ऊधमती करे उळटी ताण।। २६ एकण जायगां कारण विण रात्रि न रहणो, पिण नेडी अलगी रो न दाख्यो वैणो।
पांच कारण सूं रात्रि पिण भेळो रहणो, पांचमे ठाणे दूजे उद्देशै जोय लेणो।। २७ दिन रा साधु रे स्थानक आयाँ नें, सुखे आहार बेसण री आज्ञा दीधी।
तिण मांहि दोष परुप्यो अज्ञानी, तिण प्रत्यक्ष खांच गळा में लीधी ।। २८ ए सूत्र ना वचन उथापै अज्ञानी, पाठ रो न्याय न जाणे अंधा।
त्यांने सूत्र शस्त्रपणे प्रणम्या, बिगडायल जैन तणां जे जिंदा।। २९ कहै आर्या रो संग परचो कीधा, स्नेह भाव कर्म बंधन रो टाणो।
तिणरे लेखै आहार विगय भोगवै साध, इहां पिण लोळपणां री लहर रो ठिकाणो।
१. ववहार सुत्तं ७।१६ ५. आयारचूला३।३७ २. निसीहज्झयणं ४२२ ६. ठाणं ४।१०७ ३. ववहार सुत्तं ७।१९ ७. अवसर। ४. कप्पसुत्तं १।१९ ३४२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था