Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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७ कदै कहै म्है लिखत में नाहि, कदै कहै म्हे लिखत आरै न कीधो।
कदै कहै म्हे लिखत में आखर न कीधा, कदै कहै म्हे एक ससो कर दीधो।। ८ कदै तो कहै म्हे लिखियो सरमासरमी, लिखत हेठे अखर कर दीया ताय।
कदहि कहै मोने कहि नै कराया, कदै कहै म्हे तो लिखियो सांकड़े आय॥ ९ कदै कहै मो सूं कपटाइ दगो करै नै, लिखत हेठे आखर कराया।
कदै कहै एकलो हो तो जाणी नै, म्हे डरते थके आखर कीया छै ताय।। १० कदै कहै यां रा टोळा में रहतूं, तठा ताइ म्हारे छै पचखांण।
कदै कहै लिखत म्हारे तांई कीधो, ए सगला इ मो उपर कीधा मंडाण॥ ११ कदै कहै अविना री ढाळां जोड़ी, ते सगली ढाळां मो उपर कीनी छै ताहि।
चेला नै कह्यो ठाम-ठांम कहो थे, हिवै किण विध रह सूं टोळा रे मांहि॥ १२ इत्यादिक झूठ बोले छै अनेक प्रकारे, परभव रो डर मूल नआणे लिगार। .
जांणी झूठ बोले अग्यानी, खोय दियो तिण संजम भार ।। १३ अनंता सिद्धां री साख करै सूस कीधा, ते सगळा सूंस भांगे नै हुवो एकलो।
ते होय गयो अपछंदो अवनीत, तिण नै साध सरध्यां किम होसी भलो। १४ सुद्ध साधां नै ढीला कहि-कहि अग्यांनी, आप भागळ थको उत्कृष्टो बाजे।
तिण नै च्यारूं इ तीर्थ साध न जाणे, तो पिण निरलज मूळ न लाजै॥ १५ ज्यां नै ढीला जाणे त्यां रा टोळा रा भागळ, त्यां भागळां माहे मन जावण रोकीधो।
त्यां सूं नरमाइ करै कह्यो मो नै ल्यो थे, त्यां पिण तिण नै माहै नहीं लीधो॥ १६ थे कहो तो दूर करूं म्हारा चेला, थे कहो तो थानै परतीत उपजाउं।
थे मोनै चलावो जिण रीते चालू, थे मो नै माहै ल्यो हुं थां माहै आऊं ॥ १७ दोय वार गयो त्यां में जावा नै काजै, जातां अनेक कोस रो पेंडो कीधो।
त्यां नै अनेक बार कह्यो थे मो नै माहै ल्यो, तो पिण तिण नैं त्यां माहै न लीधो। १८ ज्यां नै ढीला जाणे त्यां रा टोळा रा भागळ, उत्कृष्टो प्राछित छै त्यां रे मांय।
त्यां भागळां पिण तिण नै माहै न लीधो, तिण भागळ री भोळा नै खबर न काय॥ १९ इसड़ा मोटा-मोटा दोष जांणी नै सेवै, तिण भिष्टी री भोळा करसी परतीत। . तिण नै साध सरधे तिक्खुत्तो कर वादे, ते पिण चिहुंगति माहै होसी घणां फजीत॥ २० सुध साधा नै मूर्ख ढीला परूपे, पोते भारी दोष सेवण लागो। . बलै कूड़ा-कूड़ा आळ देता नही संके, ते तो विरत बिहुणो होय गयो नागो॥ २१ तिण भागळ नै ओळखावण काजै, जोड़ कीधी नेणवा सैहर मझार |
समत अठारे नै वरस अड़ताले, महा विद अमावस नै सोमवार ।। इम अनेक भांत फिरमा वचन बोले, ए जिन मार्ग रीत छै नही। ते माटे संवत् १८५० रा । लिखत में कह्यो-जिण रो मन रजाबंध हुवै चोखी तरै साधपणो पळतो जांणो तो टोळा में रहिजो
३२२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था