Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
पच्चीसवीं हाजरी
पंच समिति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणां । ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो । आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो । पूजतां परिठवतां सावधानपणे रहणो । मन वचन काय गुप्ति में सावधानपणे सचेत रहणो । तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी । श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै आचार श्रद्धा प्रगट कीधा - विरत धर्म, अविरत अधर्म, आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म । असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछै ते ष, तिरणो बंछै ते वीतराग नौ मार्ग छै । तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। किण ही साध आय में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो, तथा गुरां नै कहणो । ओ नैन कहि घणां दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उहीज छै ।
तथा संवत् १८५२ रे वरस आय रे मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्य्यां में दोष देखे तो दोष रा धणी नै कहणो, तथा गुरां नै कहिणो, पिण और किण कहो नहीं। आय जाण नै दोष सेव्यो हुवै ते पानां में लिख्या विनां विगै तरकारी खाणी नही। कोइ साधु-साधवियां रा ओगुण काढै तो सांभळण रा त्याग छै । इतरो कहिणो- 'स्वामी जी नै कहिजो' जिण रा परिणाम टोळा माह रहिण रा हुवै ते
हिजो, पिण टोळा बारे हुवां पछै साधु-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बलै करली करली मर्यादा बांधे त्यां में पिण ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै ।
तथा चोतीसारे वर्स आय रे मर्यादा बांधी, तिण में कह्यो- ग्रहस्थ कनै टोळा साध आय निंद्या करै तिण नै घणी अजोग जांणणी, तिण रे एक मास पांचूं विगै रा त्याग छै । जितरी वार करै जितरा मास पांचूं विगै खावा रा त्याग छै । जिण आय साथे मेल्यां तिण आय्य भेळी रहै अथवा आय मांहो मांहि शेषे काळ भेळी रहै अथवा चोमासे भेळी रहै, त्यां रा दोष हुवै तो साधां सूं भेळा हुवा कहि देणो, न कहै तो उतरो प्रायछित उण नै छै । टोळा सूं छूट हुवां री बात माने त्यां नै तो मूरख कहीजे, त्यां नै चोर कहिजे ।
तथा पचासा रा लिखत में तथा गुणसठा रा लिखत में को-कर्म धक्को दी टोळा सूं टळे तो टोळा रा साध - साधव्यां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै । टोळा नै असाध सरध नै नवी दिख्या लेवे तो पिण अठीरा साध - साधवियां रे संका घालण रा त्याग छै। उपगरण टोळा मांहे करै ते, परंत पाना लिखे जाचे ते, साथे ले जावण रा त्याग छै ।
तथा गुणसठारा लिखत में कह्यो - किण नै कर्म धक्को देवे तो टोळा सूं न्यारो पड़े
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
३१२