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छब्बीसवीं हाजरी
पंच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड पालणां।आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा कर नै ताय तपाय नै निरदोष लेणो। पिण गोळा सूं लेणो नहीं। दातार नै पिण निरदोष देणो।
तथा भीखणजी स्वामी सूत्र देख सरधा आचार प्रगट कीधा-विरत में धर्म, अविरत में अधर्म। आज्ञा माहै धर्म, आज्ञा बारै अधर्म नै पाप। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछै ते द्वेष, तिरणो बंछै ते वीतराग देव रो मारग।
तथा संवत् १८५० रा लिखत में कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो, तथा गुरां नै कहणो, पिण ओरां नै न कहणो। घणां दिन आड़ा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उहीज छै।
तथा संवत् १८५२ वर्स आर्यों ने मर्यादा बांधी, तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहिणो, तथा गुरां नै कहिणो, पिण और किण ही आगे कहणो नहीं। किण ही आर्यां जांण नै दोष सेव्यो हुवै ते पानां में लिख्यां विना विगै तरकारी खांणी नहीं। कोई साध-साधवियां रा ओगुण काढे तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहिणो-'स्वामी जी नै कहिज्यो' जिण रा परिणाम टोळा मांहि रहिण रा हुवै, रहिज्यो। पिण टोळा बारै हुवा पछै साध-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बलै करड़ी मर्यादा बांधे त्यां में पिण ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। तथा चोतीसा रे वर्स आ· रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-टोळा रा साध-साधवियां री निंद्या करै तिण ने घणी अजोग जाणणी, तिण नै एक मास पांचू विगै रा त्याग छै। जितरी वार करै जितरा मास पांचू विगै रा त्याग छै। जिण आ· साथै मेल्या तिण आ· भेळी रहै, अथवा आर्यां माहोमां शेषे काळ भेळी रहै अथवा चोमासे भेळी रहै, त्यां रा दोष देखे तो साधा सूं भेळा हुवां कहि देणा। न कहै तो उतरो प्रायछित उण नै छै। टोळा सूं छूटक न्यारा हुवा री बात माने त्यां ने मूर्ख कहिजे। त्यां नै चोर कहिजे।
तथा पचासा रा तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-धक्को दीधां टोळा सूं टलै टोळा रा साध-साधवियां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। टोळा रा साध साधव्यां नै असाध सरध नै नवी दिख्या लेवै तो पिण अठीरा साध-साधवियां री संका घालवा रा त्याग छै। उपगरण टोळा मांहि करै ते, परत पाना लिखे ते जाचे ते, साथे ले जावण रा त्याग छै।
तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-किण ही नै कर्म धक्को दीधां टोळा सूं न्यारो परै
३१६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था