Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अथवा टोळा सूं आप ही न्यारो थयां इण सरधा रा भाई बाई हुवै त्यां रहणो नही। वाटे वहतो एक रात कारण परिया रहै तो पांचू विगै सूंखड़ी खावा रा त्याग छै। अनंता सिद्धां री साख करै नै छै। कोइ टोळा रा साध-साधवियां में साधपणो सरधो आप मांहे साधपणो सरधो तको टोळा माहै रहिजो। कोइ कपट दगा सूं साधा भेळो रहै तिण नै अनंता सिद्धां री आण छै। पांचू पदां री आंण छै। साध नाम धराय नै असाधां भेळो रह्या अनंत संसार वधै छै। जिण रा चोखा परिणाम हुवै ते इतरी परतीत उपजाओ। किण ही साध-साधव्यां रा ओगुण बोल नै किण ही नै फार नै मन भांग नै खोटा सरधावण रा त्याग छै। किण रा परिणाम न्यारा होण रा हवै जद ग्रहस्थ आगै पेला परती करण रा त्याग छै। जिण रो मन रजाबंध हवै चोखी तरह साधपणो पळतो जाणे तो टोळा माहै रहिणो। आप में अथवा पेला में साधपणो जांण नै रहिण, ठागा तूं मांहि रहिवा रा अनंता सिद्धां री साख सूं पचखांण छै। तथा साध-सिखावणी ढाल में तथा रास में पिण तथा घणां लिखंता में जिला नै निषेध्यो छै। फाड़ा तोड़ो करै, आमी साहमी बातां कर नै साध-साधव्यां रा मन भांग नै मन फड़ावै ते तो महाभारीकर्मों जाणवो। दगाबाजी कपटी जाणवो। विसवासघाती जाणवो। तथा महा मोहणी रा ढाळ, में पिण एहवो कह्यो, ते गाथा- . १९ गुण वधिया गुर ही नेसरा त्यां सूं दगो करै मन मांय रे। छळ छिद्र जोवै चोर नी परै, शिष-शिषणी लेवे फटाय रे॥
इम कर्म बंधे महा मोहणी। २० साध साध्वी श्रावक श्रावका, त्यांनै फारण रो करै उपाय।
गुर सूं मन भांगे ते नो, झूठा-झूठा अवगुण दरसाथ।। २१ करै विसासघात माहै थको, मुख मीठो खोटो मन माहि।
बलै जिलो बांधे और साध सूं, आप रो कर राखे ताहि।। २२ राजा नही तिण नै राजा कियो, राज दीधो मोटे मंडाण।
ते तो उपगारी छै मूळगो, तिणनैइज दुख देवे जाण ॥ २३ सर्पणी इंडा गलै आप रा, अस्त्री मारै निज भरतार।
बलै चाकर मार ठाकुर भणी, गुर नै शिष्य न्हाखे मार।। २४ मारे देश तणा नायक भणी, सेठ नै हणै माठे ध्यान।
कोइ मारै अधिकारी पुरुष नै, कुल में दीवा समान।। २५ कोइ संत ऋषेस्वर मोटको, घणां जीवां रो तारणहार।
द्वीपा समान डूबता जीव नै, त्यां नै हणे कोइ धेषधार॥
१. लय-जीवा ! मोह अणुकंपा न आणिये।
पच्चीसवीं हाजरी : ३१३