Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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हुवै गुरु नै रीझावणां हुवै साधपणो पाळण रा परिणांम हुवै ते आरै हुयजो। ठागा सूं टोळा मांहि रहिणो न छै । जिण रा परिणाम चोखा हुवै ते आरै हुयजो । आगै साधां रे समूचे आचार री मर्यादा बांधी ते कबूल छै । बलै कोइ आचार्य मर्यादा बांधे ते याद आवै ते पिण कबूल छै। उण नै साधु किम जाणिये जे ऐकलो वेण री सरधा हुवै। इसी सरधा धार नै टोळा मांहे बेठो रहै। माहरी इच्छा आवसी जद एकलो हुंसूं, इसड़ी सरधा सूं टोळा मांहे रहै ते तो निश्चे असाध छै । साधपणो सरधे तो पहिला गुणठाणा रो धणी छै । दगाबाजी ठागा सूं माहै रहे छै, तिण नै माहे राखै जांण नै त्यां नै पिण महादोष छै। तथा बली पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो -बली कोइ करली मर्यादा बांधे तिण में ना कहणो नही, आचार री संका पड़या थी बलै कोइ याद आवै ते लिखां ते पिण सर्व कबूल छै । ए मर्यादा लोपण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै पचखांण है। जिरा परिणामं हुवै ते आरै होयजो । सरमासरमी को काम छै नहीं ।
तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो - टोळा सूं न्यारो हुवै तो इण सरधा रा भाया बाया हुवै तहां रहिणो नही, एक भाई वाई हुवै तिहां पिण रहिणो नही | वाटै वहितो एक रात कारण पड़िया रहै तो पांचू विगै सूखड़ी खावा रा त्याग छै । अनंता सिद्धां री साख कर नै छै । तेभणी अवनीतपणो छोड़ मर्यादा सुद्ध पाळे ते विनीत तथा सूत्र में पिण वनीत नै सरायो ते पाठ
" एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं- तद्दिट्ठीए, तम्मुत्तिए, तप्पुरक्कारे तस्सन्ना तन्निवेसणे, जयं विहारी, चित्तनिवाती, पंथनिझाइ, पलिवाहिरे " - आयारो १।५।५।
अथ इहां वनीत नै ओळखायो आचार्य री दृष्ट प्रमाणे दृष्ट राखणी । आचार्य रा जाणपणां लारै जांणपणो राखणो को । इत्यादिक अनेक कार्य में आचार्य री मुरजी प्रमाणे विचरणो ।
तथा संवत् १८४५ रा लिखत में कह्यो - टोळा मांहे सूं कदा कर्म जोगे टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध - साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै । यां री अंस मात्र संका पडै आसता ऊतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै । टोळा सूं फाड़ नै सा जावा रा त्याग छै । उ आवै तो ही ले जावा रा त्याग छै। टोळा मांहै न बारै नीकळ्या पण ओगुण बोलण रा त्याग छै। मांहोमां मन फटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै । पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्त्तन रूप बात करणी, भागहीण हुवै सो उतरती बात करै, तथा सुणे ते भागहीण, सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भागहीण, ति नै तीर्थकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी ।
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था