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१५ ए तो हेलवा निंदवा जोग छै, कष्ट करवा तिण री ज्ञाता में साख।
त्यां रो संग परचो करणो नही, सूत्र मांहे भगवंत गया भाख।। १६ यां तो अनंत संसार आरै कियो, इहलोके परलोके हुसी भण्ड।
तिण नै आहारपांणी ओषद दियां, तिण नै आवे चोमासी रो डंड। १७ भेळा वेस सझाय करवी नहीं, नहीं करणो त्यां रे साथे विहार।
यां रो संग परचो करता थंका, ग्यांन दरसण चारित्र रो विगार।। इम एकल नै ओळखायो। तिण की संगति सूं समकत आदि घणां गुणां रो नास हुवै, अवगुण नीपजे। ठांम-ठांम सूत्र में एकला नै रहणो वरज्यो छै। आचारंग ववहार वेद कल्प आदि अनेक साख छै। बलै भीखण जी स्वामी पिण एकला नै सफा वरज्यो छै। ते गाथा१ . 'केकां सूं तो भेळो रहिणी नावै, तिण सूं फिरे एकलो आप।
ते सुध साधां नै असाध परूपै, बलै करै एकलो रहण री थाप रे॥ भवियण जोवो रे हिरदै विचारी, थे तो अंतर आंख उधाड़ी रे।
भवियण एकल छै जिण आगन्यां बारी।। २ ओ किण कारण फिरे छै एकलो, ते तो भोळा नै नहीं ठीक।
तिण रा कूड़ कपट नै दोष सेवण री, कुण करै तहतीक।। ३ तिण एकल मांहे अनेक अवगुण छै, बलै कूड़-कपट रो भंडार।
ते एकल रहै छै सगळां तूं डरतो, रखे करेला म्हारो उघाड़। ४ तिण एकल रा सील आचार री, तिण री भोळा करसी परतीत।
के इ चतुर विचखण डाहा होसी ते, एकल नै जांणे विपरीत ॥ ५ केड कोधी कषाड लोळपी होसी ते तो फिरसी एकेला।
केइ विषे तणे वस फिरे एकला, एहवा एकल कदेय न भला।। ६ ठांम-ठांम सूत्र मांहे श्री वीर नषेध्यो, साधु नै एकलो रहणो नांहि।
केइ एकल नै साध सरधे न वांदे, ते पिण पड़िया मोटा फंद मांही॥ ७ इम सांभळ उत्तम नर नारी, एकल दूर तजीजे।
उत्तम साधु सुद्ध आचारी त्यांनै, हरष सहीत गुर कीजे॥ ८ इण पंचमे आरै फिरै एकला, ते नेमाइ निश्चे भिष्टी।
विवेक विकल जिण आगन्यां बारै, त्यां नै साध न सरधे समदृष्टि। इहां पिण एकल में तो साधपणो बिलकुल नहीं तथा पैंताळीसा रा लिखत में एहवो कह्यो-टोळा माहि कदाच कर्म जोगे टोळा बार पड़े तो टोळा रा साध साधव्यां रा अंश मात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पडै आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै।
१. लय-जे जे कारण जिन-आज्ञा मांहे छै। ३०२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था