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तेईसवीं हाजरी
पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणां । ईर्ष्या भाषा में सावचेत रहिणो। आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परिठवतां सावधान पणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहिणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म नै अविरत अधर्म, आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ने द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। सर्व साधां नै सुद्ध आचार पाळणो। माहोमां गाढो हेत राखणो। जिण ऊपर मरजादा बाधी- कोइ टोळा रा साध-साधव्यां में साधपणो सरधो, आप माहै साधपणो सरधो, तिको टोळा माहे रहिज्यो। कोइ कपट दगा सूं साधां भेळो रहै, तिण नै अनंता सिद्धां री आंण छै। पांचूं पदां री आण छै। साध नाम धराय नै असांधां भेळा रह्या अनंत संसार वधे छै। जिण रा परिणाम चोखा हुवै ते इतरी परतीत उपजाओ। किण ही साध-साधवियां रा
औगुण बोल नै किण ही नै फार नै मन भांग नै खोटा सरधावण रा त्याग छै। किण ही सूं साधपणो पळतो दीसै नहीं अथवा सभाव किण सूं इ मिलतो दीसै नही अथवा कसायी धेटो जांण नै कोइ कनै न राखे अथवा खेत्र आछो न बतायां अथवा कपड़ादिक कारण अथवा अजोग जांण नै और साध गण सूं दूरो करै अथवा आप नै गण सूं दूरो करतो जांण नै इत्यादिक अनेक कारण उपने टोळा मां सूं न्यारो पड़े तो किण ही साध-साधवियां रा ओगुण बोलण रा, हुतो अणहुँतो खूचणो काढण रा त्याग छै। रहिसे-रहिसे लोकां रे संका घाल नै आसता उतारण रा त्याग छै। कदा कर्म जोगे अथवा क्रोध वस साधां नै साधवियां नै सर्व टोळा नै असाध सरधे, आप में पिण असाधपणो सरध नै फेर साधपणो लेवे तो ही पिण अठीरा साध-साधवियां री संका घालण रा त्याग छै। खोटा कहीण रा त्याग ज्यूं रा ज्यूं पाळणा छै। पछै यूं कहिण रा पिण त्याग छै। म्हे तो फेर साधपणो लीधो, अबे म्हारे आगला सूंसा रो अटकाव को नही, यूं कहिण रा पिण त्याग छै, किण ही साध आल् नै पिण साध आर्त्यां री आसता उतरे साध आर्या री संका पडै ज्यूं असाधपणो सरधे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहिणो, अथवा गुरां नै कहणो, पिण ओरां नै न कहिणो, घणां दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उहीज छै। किण ही रा परिणाम न्यारा होण रा हुवै जद ग्रहस्थ आगै पेला री परती करण रा त्याग छै। जिण रो मन रजाबंध हुवै चोखीतरै साधपणो पळतो जाणे तो टोळा मांहे रहिणो। आप में अथवा पेला में साधपणो जांण नै रहिणो। ठागा सूं रहिवा रा ३०४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था