Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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८. साधा री इच्छा आवै जुदो विहार करावण री ओर आ· साथे जुदी-जुदी
मेले तो नां कहिणो नहीं। ९. साध-साधवियां रो कोइ खूचणो दोष प्रकतादिक रो ओगुण हुवै तो गुरां नै
कहणो। पिण ग्रहस्थादिक आगै कहणो नहीं। आहारपाणी कपड़ादिक में
साधां नै लोळपणां री संका उपजे तो साधां नै परतीत उपजे ज्यूं करणो। १०. अमल तमाखू आदि रोगादिक रे कारणै पड्यां लेवे पिण विस्न रूप लेणो
नही। लीयाइज सजै ज्यूं करणो नहीं। ११. बले सर्व साध-साधव्यां नै आचार गोचार माहे ढीला पड़ता देखे अथवा
संका पड़ती जांणे जद समचे सर्व साध साधवियां री करली मर्यादा बांधे तो पिण ना कहिणो नही। इत्यादिक सीखावण चारित संघाते अंगीकार कर
लेणी। ते जावजीव पचखांण छै। संवत् १८३३ मिगसर विद २ वार बुध ए लिखत वंचाय अंगीकार कराय नै समायक चारित्र अंगीकार करायो छै। बले फेर छेदोपस्थापनी चारित्र दीधो, जद पिण लिखत वंचाय नै अंगीकार कीधो छै, हरष सूं च्यांस इ आर्सा । अथ अहां फतूजी नै एतलो करार करी नै टोळा मांहे भीखणजी स्वामी लीधी। दीक्षा दीधी। अनै तेतीसा रा वरस में आर्यां रै मरजादा बांधी। तिण में कह्यो
तथा चोतीसा रे वरस आ· सर्व रे लिखत में कह्यो-मांहो मांहि आ--आने तूंकारो दे तिण नै पांचू विगै रा त्याग। जितरा तूंकारा काढ़े जितरा पांच-पांच दिन रा विगै रा त्याग। प्रायछित आयो तिण रो मोसो बोले जितरा पांच-पांच दिन विगै रा त्याग। ग्रहस्थ आगे टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करै तिण नै घणी अजोग जाणणी, तिण नै एक मास पांचू विगै रा त्याग, जिती वार करै जितरा मास पांचू विगै रा त्याग, आर्यां री माहि-मांहि री बात कराय नै उणरो परत वचन उण कने कहे उण रो मन भांगे जिसो कहि नै मन भांगे तो १५ दिन पांच विगै रा त्याग, माहोमांहे कहै -तूं सूंसा री भागल छै। एहवो कहै तिण रो १५ दिन विगै रो त्याग छै। जितरी वार करै जितरा १५ दिन रो त्याग छै। आंसू काढ़े जितरी वार १० दिन विगै रा त्याग छै। के १५ दिन में बेलो करणो। इत्यादिक करलो काठो वचन कहै तिण नै जथा जोग प्राछित छै। ए विगै रा त्याग छै ते उणरी इच्छा आवै जद साधां सूं भेळा हुआं पेली टाळणा। जो नहीं टाळे तो बीजी आर्यां यूं कहिण पावै नहीं तूं टाळ हीज। साधां नै कहि देणो। साधां री इच्छा आवै तो द्रव्य क्षेत्र काळ भाव जाण नै ओर डंड देसी। अनै साधां री इच्छा आवसी तो विगै रो त्याग घणो करावसी। बलै आर्सा रे मांहि २ साध-साधवियां नै न कळपे, लोकां ने अणगमती लागे, उण री जातादिक रो लूँचणो काढणो, जिण भाषा रो पिण साधां री इच्छा आवै जिता दिन देवे ते कबूल करणो छै। जिण आर्यों ने ओर साथे मेल्यां ना न कहिणो। साथे जाणो न जाय तो पांच विगै खावा रा त्याग न जाय जितरा दिन। बले ओर प्राछित जठा बारै साधां रा मिलियां बिना आर्यां ओर री ओर आर्यां साथे जाओ तो जितरा दिन रहे जितरा दिन पांचू विगै रा त्याग। बलै ओर
उन्नीसवीं हाजरी : २८५