Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२२ यां ने राखसो टोळा रे मांहि, तो हूं बारे निकळसूं ताहि।
थे तो यारी करो पखपात, तिण सूं मानूं नहीं थारी बात॥ २३ बले घणी साधवियां मांहि, साधपणो न जांण ताहि।
बले दोष घणा में बतावे, विपरीतपणे सुणावे॥ २४ हूं धरती छोड़ परो नहीं जाऊं, यां क्षेत्रों में साथे लगो आऊं।
थां सांहमो उतरतूं आंणो, ओर गया ज्यूं मौने म जाणो। २५ थां रा दोष घणां ने सुणाऊं थां ने चोड़े असाध सरधाऊं।
इम बोले घणो विकराळ, संके नहीं देतो आल।। २६ जिण सूं बात बांधी थी भेळी, तिण साथै चेपी मैली।
कायक दोष ओ पिण काढे, उण ने बले पोगां चाढ़े।। २७ इण री आगै इ कीधी पखपात, झूठी साख भरी साख्यात।
जब इण नै इनषेध्यो थो गाढो, तिण सूं ओ पिण बोले आडो-आडो॥ न्याय तणी नहीं बात. झठी करवा लागो पखपात।
न्याय निरणां री हुंती नीत, तो इण ने नषेदे इण रीत।। २९ ओ तो तोमें ही छै बांक, तू दोषण राख्या ढांक।
आ तो लोप दीधी मरजाद, तूं तो झूठो करे विषवाद।। ३० घणां दिना काढे दोष अनेक, तिण री बात न मानणी एक।
आपां रे छै इसड़ी मरजाद, हिवै क्यांने करे विषवाद ।। ३१ इण ने इण विध घाले कूड़ो, घणां बेठा घाले मुख धूड़ो।
पिण चोरां कुत्ती मिली तेह, ते तो पोहरा किण विध देह।। ३२ ज्यूं मिलियो अवनीत सूं जेह, तिण ने न निखेदसी तेह।
जब गर जाण्या इण रे सीहे. ओ तो बोलतो मूल न बीहे।। ३३ ओ तो दीसे छै भारीकर्मो, निरलज घणो वैसरमो।
इण ने परतष सूझी भंडी, जब गुर तो विचारी ऊंडी।। रखे छूट एकलो थावे, रखे संका घणां पर जावे।
रखे गूंजे पांखडी अयांण, रखे जिण मत री पड़े हाण ।। ३५ रखे घट जायेला उपगार, वेदो उठेला लोक मझार ।
जो इण ने करला कहूं इण वारो, तो ए छूट होय जायला न्यारो। ३६ ओ तो चढियो क्रोध अहंकारो, तो हिवे करणो कवण विचारो।
जो नरमाइ किया ठाम आवै, आलोय नै सुध थावे ।।
१. पक्ष।
२. स्थान पर।
बारहवीं हाजरी : २४९