Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
६ तिण झूठा ने कहे कोइ झूठो, तिण सूं तो रहे नित रूठो।
खपे छै तिण रे देवा आळ, जांणै टोळा मां सूं देउं टाळ। ७ यां तो घणां साधां रे मांय, म्हारी आब न राखी काय।
म्हारी आसता चोड़े उतारे, तो हूं क्यांने रहूं यारे सारे।। त्यां ने छोड़ ने होय जाऊंन्यारो, यां रे पिण करूं बोहत बिगाड़ो। यां में दोष परुपूं भारी, जब खबर पड़े यां ने म्हारी।। यां रा चेला ने बले चेली, त्यां ने फाड़ करूं म्हारा वेली।
इसड़ी चिंतवे मन माय, मिले ओर साधां सूं जाय। १० जिण विध गुर सूं मन भागे, तेहवी बात करे तिण आगे।
जिण विध गुर सूं जागे द्वेष, तेहवी बात करे , विशेष। ११ बले बोले आळ पंपाळ, झूठा-झूठा दे गुर रे आळ।
बले दोष अनेक बतावे, जाबक खोटा सरधावे।। १२ गुर गुरभाई ऊपर धेख, त्यां रा अवगुण बोले अनेक।
'ज्यूंना'-ज्यूंना खुरट' उखेले, आप रे मन माने ज्यूं ठेले॥ १३ बले आप रे स्वार्थ नावै, त्यां में दोष अनेक बतावे।
केका री तो परतीत नाणूं, त्यां ने थेट रा असाधु जाणूं। १४ टोळा मांहे तो घणी ढीलाइ, कह्यां ठीक न लागे कांइ।
तिण सूं म्हारे तो हुवणो न्यारो, यां में कुण बिगाड़े जमवारो।। १५ जो हूं इसड़ा जाणतो यां ने, तो हूं घर छोड़तो क्यांने ।
हूं तो घर छोड़ ने पिछताणो, म्हे तो खोटा खाधा अजाणो।। १६ कळह लगावण री करे बात, जांणे फाड़ लेउ म्हारे साथ।
जब पेलो हुवे कान रो काचो, तो उ मान ले उण न साचो॥ १७ जब ओ राखे इण री परतीत, ओ पिण बोले इणहीज रीत।
ओ तो किण ही में दोष न जाणे, इण रा कह्या सूं ओ पिण ताणे॥ १८ जब ओ आप रो बेली जाण, पछे गुर -सूं झगड़े आण।
यां बेठाहीज उधो बोले, आंगुणां रो पिटारो खोले। १९ यां आगे बोल्यो तिणहिजरीत. गरु आगे बोले विपरीत।
बले बोले अन्हाषी अलाल, गुर ने देवे झूठा आळ।। २० जिण इण ने घाल्यो थो झूठो, तिण सूं तो बेठो थो रुठो।
तिण में दोष अनेक बतावे, मन माने ज्यूं गोळा चलावे।। २१ हूं तो थांने न जाणुं साध, घर में थकां रो जाणूं असाध।
यां रा महाव्रत पांचूंइ भागा, सुमति गुप्त में दोषण लागा।। १. पुराने-पुराने २४८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था