Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बारहवीं हाजरी
पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा । ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहणो। आहार पाणी लेणो ते पकी पूछा करी ने लेणो । सूजतो आहार पाणी पण आगला रा अभिप्राय देख लेगो । पूजतां परठवतां सावधान पणे रहणो । मन वचन काय गुप्ति में सावचेत रहणो । तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी । श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देखने आचार सरधा प्रकट कीधा - विरत धर्म ने अविरत अधर्म । आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म । असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरो बंछे ते वीतराग देवनो मार्ग । तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी।
संवत् १८५० रे वरस साधां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो - किण ही साध आय दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो अथवा गुरां ने कहणो पिण ओरां ने न कहो । घणा दिन आडा घाल न दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उहीज छै ।
तथा संवत् १८५२ रे वरस मर्यादा बांधी, तिण में कह्या- किण ही साध आय मTहै दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो के गुरां ने कहणो पिण ओरां ने कहणो नहीं । किण ही आय दोष जाण ने सेव्यो हुवे ते पाना में लिख्यां विना विगै तरकारी खाणी नहीं। कोइ साध-साधव्यां रा अवगुण काढ़े तो सांभळवा रा त्याग छै । इतरो कहिणो स्वामी जी ने कहिजो इमहीज पेंताळीसा रा पचासा रा लिखत में अने रास में जिला ने घणो निषेध्यो छै । माटे जिलो बांधण रा त्याग छै । तथा घणां दिनां पछें दोष न कहणो रास में वरज्यो छै। तथा 'साध सीखावण' ढाळ रा दूहा में घणां दिन पछै दोष कहे तिण ने अपछंदो कह्यो । निर्लज कह्यो । नागड़ो को छै ।
तथा संवत् १८३४ ने वरस आर्य्यां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो - गृहस्थां महि आमना जणाय ने एक-एक री आसता उतारे तिण में तो अवगुण घणाहीज छै । बले फजी ने मांहि लीधी तिको लिखत सगळी आर्य्यां रे कबूल छै । बले अनेक-अनेक बोल करली मर्यादा बांधी ते कबूल छै। ना कहिण रा त्याग छै ।
तथा बत्तीसा रा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कह्यो उसभ उदै टोळा बारे कळ्यांत ने साध सरधणो नहीं । च्यार तीर्थ में गिणणो नहीं । एहवा ने वांदे पूजे तिके पिण आज्ञा बारे हैं।
तथा पचासा रा लिखत में कह्यो पेलां रा दोष धार ने भेळा करे ते तो एकत मृषवादी अन्याइ छै । किण ही ने खेत्र काचो बतायां किण ही नें कपड़ादिक मोटो दीधां इत्यादिक कारणे कषाय उठे जद गुरवादिक री निंद्या करण रा अवर्णवाद बोलण रा - एक-एक आगे बोलण रा मांहोमां मिलने जिलो बांधण रा त्याग छै । अनंता सिद्धां री आण छै। कदा कर्म धको दीधां टोळा सूं टळे टोळा रा साध - साधव्यां रा अंस मात्र हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै । टोळा ने असाध सरधने नवी दिख्या लेवे तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
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