________________
२० आगे तो यां री राखत परतीत, निज गुर सूं हुआ विपरीत।
सुद्ध साधां ने कह्या बले भंडा, ते तो दो प्रकारे बूडा।। २१ जो यारे बंधिया निकाचित कर्म, तो छूट जासी आं सूं जिन धर्म।
जासी मानव रो भव हार, पड़सी नरक निगोद मझार ।। २२ जो यां रे न बंध्यो निकाचित कर्म, कदा पड़ जाये पाछा नर्म।
कदा आलोय ने सल काढे, निज काम सिराड़े चाढ़े। २३ न्यारा थकां हुंता घणा गेरी, गण रा हुआ छा पूरा वैरी।
सर्व साधां ने असाध सरधाया, त्यां में हीज डंड ओढ नैं आया। २४ यां तो च्यार तीर्थ रे मांय, कीधो थो घणो अन्याय।
पिण प्राछित ले आया मांही, टोळा री परतीत अणाई॥ २५ घणा श्रावक हुआ निसंक, यां में हीज जाणियो बंक ।
यां तो दोष बताया मांय. आंतो झठी कीधी वकवाय।। २६ बारे थकां तो कहिता असाध, मांहे आए सरधे लिया साध।
इण विध बोल्या विपरीत, त्यां री तुरत नावै परतीत ।। २७ टोळा रा साध साधवियां मांहि, साधपणो न कहता ताहि ।
इण बात सूं भंडा घणा दीठा, पड़िया च्यार तीर्थ में फीटा। २८ कदा गुरू ने पिण दोषण लागे, तो कहिणो नहीं ओर आगे।
गुर ने हीज कहिणो सताब, घणा दिन नहीं राखणो दाब ।। २९ बले फाड़ा तोड़ा री बात, किण सूं करणी नहीं तिलमात।
जिलो बांधणो नहीं मांहो मांहि, फेर साथे ले लावणों नांहि। ३० पांचू पद विचे दे आया मांय, आलोवणा प्राछित ठहराय।
आज्ञा में चालणो रूड़ी रीत, पूरी उपजावणी परतीत ।। ३१ आगा विचैइ रहणो विनीत, बाकी सब आगली रीत।
इत्यादिक पहली सैंठी ठहराय, पछे गण में लेणा थाप्या ताय॥ अथ इहां जे अवनीतरी प्रकति ओळखाइ, गण में तो गुरां रा गुण गावे, बारे नीकळी अवगुण बोले, फेर डंड पोत ले इ माहै आवे, कर्म जोगे बले बारे पड़यां अवगुण बोले ए अवनीत अजोग रा लखण न्यारो थया अवगुण बोले तथा मर्याद लिखत सुणी आप ऊपर खांचे। बले रास में एहवी गाथा कही३२ विनीत सुण-सुण पामै हरष, पड़े अवनीत रै मन धड़क।
ते तो रहे चोर ज्यूं राच, लेवे आपण ऊपर खांच।।
१. लय. : म्हारी सासू रो नाम छै फूली।
२४४
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था