Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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इम
जांणी की नरमाइ, परतीत पूरी उपजाइ । किण रे संका न राखी काय, सगला ने दिया समजाय ॥ जब ओ किण विध बोले उंधो, हिवै ओ पिण बोलियो सूधो । अब तो जावजीव रहूं मांय, गण छोड़ण री न काढूं वाय ॥ इण दोषण काढ्या था अनेक, तिण री पाछी न पूछी एक । किण ने थोड़ो घणो दंड देणो, ते पिण नहीं कढियो वेणो || बले घणी साधवियां मांहि, साधपणो न जाणतो ताहि । त्यां काढणी नहीं ठहराइ, त्यां री बात न कीधी कांइ ॥ यां ने छोड्यां रहूं गण मांय, तका पिण काढी बात न काय । टोळा मांहै कहतो थो ढीलाइ तिण री पाछी नहीं चलाइ ॥ सगली ढीली मेली दीधी बात, विनै सहित बोले जोड़ी हाथ । हिवै आप घणो पिछतावे, गुरु ने वारूंवार खमावे ॥
इम अठे पण अनेक भाव कह्या ते सुण ने हळुकर्मी हुवे ते सरल प्रकृति करने आत्मा वस करे। अवनीत री संगत छोड़े। मर्यादा सुद्ध पाळे गुर री मुरजी प्रमाणे सर्व काम में प्रवते ।
तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्या - टोळा मांहे सूं कदा कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो टोळा साध-साधव्यां रा अंस मात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। मांहोमां मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै । यां री अंस मात्र संका पड़े आसता उतरे जिम बोलण रा त्याग छै। टोळा मांहे सूं फाड़ने साथ ले जावा रा त्याग छै । उ आवे तो ही ले जावा रा त्याग छै । टोळा मांहे न बारे . नीकल्या अंस मात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै । इम पैताळीसा रा लिखत में कह्यो । ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन सूप बात करणी । भागहीण हुवै सो उतरती बात करे । तथा सु भागहीण तथा सुणे आचार्य ने न कहे ते पिण भागहीण । तिण ने तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी ।
यावि जाणंति
आयरिए आराहेइ, समणे गिहत्था विणं पूयंति, जेण आयरि नाराहेइ, सम यावि गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति
' इति दशवैकालिक में कह्यो ते आज्ञा मर्यादा आराध्यां
उभय भवे सुख कल्याण हुवे । ए हाजरी रची संवत् १९१० वार वार सोम जेठ विद ११ बषतगढ़ मध्ये |
१. दसवे आलियं, ५।२।४५,४०
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तारसो ।
तारिसं ॥
तारिसो।
तारिसं । ।
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था