Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पन्द्रहवीं हाजरी
पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा। ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो। सूजतो आहार पिण आगला रा अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परठवतां सावधानपणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म, अविरत अधर्म । आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। पचासा रा लिखत में कह्यो- किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहिणो, अथवा गुरां नै कहिणो, पिण ओरां ने न कहिणो, घणां दिनां आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उ हीज छै।
तथा बावनां रे वर्ष आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में इम कह्यो-किण ही साध आर्थ्यां मांहे दोष देखे तो ततकाल धणी नै कहणो, के गुरां नै कहणो पिण ओरां ने कहणो नहीं। किण ही आल् दोष जाण नै सेव्यो हुवै ते पांना में लिखियां बिनां विगै तरकारी खांणी नहीं। कोइ साध-साधवियां रा ओगुण कादै तो सांभळण रा त्याग छै। तथा घणां दिनां पछै दोष न कहिणा, लिखतां में तथा रास में ठांम-ठांम कह्यो छै। तथा 'साध सीखावणी' ढाळ रा दूहा में घणा दिनां पछै दोष कहे तिण नै, मर्यादा रो लोपणहार कह्यो। कषाय दुष्ट आत्मा रो धणी कह्यो छै। तथा चोतीसा रे वर्स आर्सा रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-ग्रहस्थ आगे टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करे तिण नै घणी अजोग जाणंणी। तिण रे एक मास पांचू विगै रा त्याग छै। जितरी वार करै जित रा मास पांचू विगै रा त्याग। जिण आर्यां साथे मेली तिण आर्थ्यां भेळी रहै अथवा आर्यां माहोमांहि भेळी रहे अथवा चोमासे भेळी रहे त्यां रा दोष हुवै तो साधां सूं भेळा हुयां कहि देणो, न कहे तो उतरो प्राछित उण नै छै।
तथा पैंताळीसा रा लिखत में तथा पचासा रा लिखत में तथा रास में जिला ने घणो निषेध्यो छै तथा पचासा रा लिखत में तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-उसभ उदै टोळा सूं न्यारो पड़े तो किण ही साध साधवियां रा ओगुण बोलण रा नै हुँतो अणहूंतो ख्रचणो काढण रा त्याग छै। रहिसे-रहिसे लोकां रे संका घाल नै आसता उतारण रा त्याग छै। टोळा नै असाध सरध नै फेर नवी दिख्या लेवे तो ही अठीला साध-साधव्यां रा ओगुण बोलण रा त्याग छै। एहवो गुणसठा रा पचासा रा लिखत में कह्यो छै। जे टोळा बारे नीकळी पोता री समदृष्टि राखे, फेर टोळा रा साध-साधव्यां
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