Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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गणी समीपे बहु रहै, तो बहु साज करेह । पिण इक साजे बहु अज्जा, नेठाउ मत देह।। प्रकृति तनु रोगी विरध', जो तिण ने सोंपेह । तास निभावा अधिक दै, अवसर देखी जेह ।। गण वृद्धि चाहो सुगणपति, चतुरमास उतरेह। बाहुल्य दरसण विन किये, विचरण आण म देह।। गण वृद्धि चाहो सुगणपति, संत सती गुण गेह। विण कारण इक ग्राम में, रहिवा आण म देह।। गणवृद्धि चाहो सुगणपति, संत सती गुण गेह। परिचय रूपज. सेव नी, तूं आणा मत देह ।। गण वृद्धि चाहो सुगणपति, चतुरमास उतरेह। संत सती आवै तसु, पूछा सर्व करेह॥
गणी गुण धारी रे २। वर जय गणपति जी हरख सीख हितकारी रे, गणी०॥ ए समण-सत्यां नी, संपति अविचल सारी रे ॥गणी०॥ मरजाद पळायां अति गण वृद्धि उदारी रे, गणी०॥ध्रुपदं॥ चउमासो उतरियां आवै मुनिवर अज्जा ज्यांरी रे। तास हकीगत सर्व पूछणी, ए नीती निरधारी रे॥ संत सती चउमासा पाछै, दरसण करै तिवारी। पुस्तक पड़घे विण सूप्यां तसु, च्यार आहार परिहारी।। सेखैकाळ' विचरिया त्यांरी, पूछा कीजै सारी। चउमासा री इमज बारता, पूछ करै निरधारी। घृत, माखण, पय, दही, - लकारज, ओखधि करै तिवारी॥ विगय मर्याद थी अधिक न लेणी, पूछा काजै सारी॥ गणपति पे चउमासो धारी, विहार कियौ सुखकारी। चउमासा पहिला वा पाछै, विचस्या क्षेत्र मझारी॥ जे जे रात्रि रह्या जे क्षेत्रे, पूछ करै निरधारी। इक-बे-त्रिण-निसि प्रमुख मास लग, कारण अधिक विचारी।।
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१. वृद्ध २. लय : हीडे हालो रे। ३. जिस समय
४. विवरण ५. चतुर्मास के अतिरिक्त आठ महीने ६. मैथी आदि के लड्डू
५८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था