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१४ बीजो हरामखोर लूणहराम, सामद्रोही रा दुष्ट परिणाम।
तिण तूं पिण राय रूठो किणवार, तिण रो पटो उतार काढ्यो देश बार। १५ जब उ दोरा करे बले करे उजाड़, राय तणा देश में करे बिगाड़।
फिर २ मारे बले नगर ने गांम, बले राय सूं सनमुख करे संग्राम। १६ राजा सूं जुझ करे तांण ताण, देखो नीच वधारया रा झै फळ जाण।
ज्यां वधारयो त्यांसू इ मांड्यो गर्व, उपगार कीधो ते भूळ गयो सर्व॥ १७ जब राजा अनेक करने उपाय, हरामखोर न कपड़ लियो ताय ।
इण रा हाथ पाव कान नाक ने काट, गाम दोळो फेस्यो गधे चाढ़। बले विविध प्रकारे दीधी मार, फिट-फिट हुवो लोक मझार। ए तो लोकिक कयो दिष्टंत, हिवे लोकोत्तर सुणो मन षंत ।। एक आचार्य मोटा अणगार, दोय जणा सूं कियो उपगार।
त्यां ने समकम पमाय ने किया साध,बले ज्ञान भणाय ने करी छै समाध॥ __यां मे एक तो गुर भगता सुवनीत, तिण में असल साधू री रीत।
घणो भणे तो ही न करे मान, अवनीत री बात सुणे नहीं कान।। तिण ने गुर करड़े वचने देवे सीख, तो पिण अविना साहमी न भरे वीख।
वले गुर निषेदे वारंवार, तो पिण न करे क्रोध लिगार। ___ गुर ने देखी करड़ी निजर करुर, तो पिण न बिगाड़े मुख नो नूर।
गुर राखे तो रहे गुर नी हजूर, गुर न राषे तो सुषे रहे दूर ।। सदा गुर सूं राखे सुध परिणाम, रात दिवस करे गुर रा गुण ग्राम।
याद आवे गुर नो कियो उपगार, ते तो कदेय न घाले विसार।। ___ एहवा गुणां करे कर्मा नो सोष, अनुक्रमे पांमे अविचल मोष।
एहवा ऊंच जीव ऊंच पदवी लही, त्यां रा सुषां रो कोई पार नहीं॥ दूजा वनीत री ऊंधी रीत, जो घणो भणे तो घणो अवनीत।
गुर सूं पिण यो करे अभिमान, ओर अवनीत ने लगावे कांन॥ . तिण नै गुरुं सीख देवे चूको देष, तो तुरत जागे अवनीत ने धेष।
घणो छेड़वे तो करे बिगाड़, क्रोध करने होय जाजै न्यार॥ २७ बले दूजो अविनीत हुवै टोळा मांय, तिण ने पिण देवे भरमाय ।
गुर सूं मन भागे कूड़ी कर २ बात, तिण अवनीत ने ले जावे साथ।। २८ गुर ना अवगुण बोळे दिन रात, संका पिण नाणे तिल मात।
अवनीत वधास्या अति ही मिथ्यात, झूठी कर २ मुख सूं बात।।
१.गति।
आठवीं हाजरी : २२९