Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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इत्यादिक अवनीत रा लखण ओळखाया तथा अवनीत ने वधारणो नहीं कृतघनी कीधा उपगार नो अजांण, तिण ने हरामखोर लूणहरामी सांमद्रोही री उपमा दीधी ते वनीत ने सामधर्मी नी उपमा दीधी छै, ढाळ में दृष्टांत सहीत कही ते गाथा
ऊंदर ऊपर मनकी त्रापी जांण, जब जोगी उंदर री अणकंपा आण। तिण जोगी मंत्र पढ़ ततकाल, उंदरा ने कीयो गोधड़ विकराल ।। जब मिनकी नाठी गोधड़ ने देख गोघड़ देखने त्राप्यो स्वान विशेष। जोगी गोघड़ नी कुरणा लीध, कुत्तो सिकारी ततक्षिण कीध ।। अहो कर्म गति इधकी देष, जोगी मोह्यो राग विशेष। स्वान देखी चीतो त्राप्यो आय, जब स्वान ने जोगी सिंघ कीधो ताय॥ जब चीतो नाठो सिंघ री देख हाक, सीकंप हुवो पड़ी मन में धाक। हिवे तिण सिंघ ने भूख लागी छै ताम, तिण जोगी ने खावा उठ्यो तिण ठाम। जब जोगी देख मन इचरज थात, देखो नीच उदर री जात। इण री मिनकी करती अकाले घात, ते म्हे बचाय लियो साख्यात।। माहरो उपगार कियो न गिण्यो तिल मात,म्हारी उळटी मांडी करवा घात॥ म्हे नीच उंदर ने उंचो लियो. सिंघनी पदवी देने मोटो कियो। नीच ने वधारया आछो हुवे नाहि, ते भाख्यो छै नीत सास्त्र मांहि। तो इण ने पाछो ऊंदर करूं मंत्र राल, सिंघ ने उंदर कियो ततकाळ।। ते उंदर जाबक हुवो अनाथ, तिणरी मिनकी बले करवा मांडी घात। जोगी देख अणकंपा कीधी नांहि, किरतघन मूवो ते बिल रे मांहि॥ ज्यूं नीच ने ऊंच पदवी जीरवे नाहि, जोय देखो लोकिक लोकोत्तर माहि। किण ही राय वधाऱ्या अमराव दोय, बले किया पदवी धर मोटा सोय।। यां में एक तो सामधर्मी सुवनीत, बले राजनीत जाणे सर्व रीत।
तिण सूं राय रूठो किणवार, पटो उतार काढ्यो देश बार।। ११ जब राय उपर इण न करयो रोस, जांण लियो निज कर्म रो दोष।
अळगो रहे तो ही मांने कियो उपगार, राजा तणो सदा रहे हितकार।। ___ कदा राजा ने भीड़ पड़ी सुण कान, भीड़ी आयो लेई साथ समान।
बले मुख सूं कहै माहरां सिरधणी आप, सारो दीसे ते आप तणो परताप। १३ इम सुण ने तिण सूं रीज्यो राय, आगे विचे इ घणो वधरायो ताय।
बले घणो वधारयो तिण रो मान, आगेवाण कियो सगली ठाण।।
१. लय-म्हे तो भार लियो ४. बिल्ली। २. वन- विलाव।
५. जागीरदार विशेष। ३. दया, करुणा।
६. मालिक। २२८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था