Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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घात पावड़ी करे ते तो अनंत संसार नी साइ छै। रोगिया वचे तो सभाव रा अजोग ने मांहे राखे ते मँडो छै। या बोलां री मर्यादा बांधी ते चोखी पाळणी, लोपवा रा अनंता सिद्धां री साख करने पचखांण छै। ए पचखांण पाळण रा परिणाम हुवे तो आरे हुयज्यो। बिनै मार्ग चालण रा परिणाम हुवे गुरु ने रीझावणा हुवे ठागा सूं टोळा मांहि रहिणो न छै। तथा पचासा रा लिखत में तथा रास में जिला ने घणो निषेध्यो छै, ते माटे जिलो बांधवा रा त्याग छै।
तथा चोतीसा रा लिखत में आर्यां रे मर्यादा बांधी ते कहे छै-टोळा सूं छूटक हुवां री बात माने त्यांने मूरख कहीजे, चोर कहीजे, अनेक अनेक सूंस करण ने त्यारी हुवे तो ही उत्तम जीव न मांने एहवो कह्यो।
तथा ५०सा रे लिखत में मर्यादा बांधी "दोष कोइ ग्रहस्थ कहे जिण ने यूं कहणो-म्हांने क्यांने कहो, के तो धणी ने कहो, के स्वामी जी ने कहो, ज्यूं यां ने प्राछित दिराय ने सुद्ध करे, नहीं कहो तो थे पिण दोषीला गुरां रा सेवणहार छो। जो स्वामी जी ने न कहिसो तो थां में पिण बांक छै। थे मांने कह्या कांइ हुवें, यूं कहिने न्यारो हुवे पिण आप वेदा में क्यांने परे। पेला रा दोष धारने भेळा करे ते तो एकंत मरषावादी अन्याइ छै। किण ही ने खेत्र काचो बतायां. किण ही ने कपडादिक मोटो दीधा. इत्यादिक कारणे कषाय उठे जद गुरवादिक री निंदा करण रा अवरणवाद बोलण रा एक एक आगे बोलण रा मांहो मांहि मिलने जिलो बांधण रा त्याग छै। अनंता सिद्धां री आंण छै। डाहा हुवे ते विचार जोयजो। लुखे खेत्र तो उपगार हुवे तो ही न रहे, आछे खेत्र उपगार देखे नहीं तो इ पर रहे, ते यूं करणो नहीं, चोमासो तो अवसर देखे तो रहिणो. पिण शेषे काल तो रहणोहीज। किण ही री खावा पीवादिकरी संका पडे तो उण ने साध कहे, बड़ा कहे ज्यूं करणो, दोय जणा तो विचरे ने आछा-आछा मोटामोटा साताकारिया खेत्र लोळपी थका जोवता फिरे गुर राखे तठे न रहे। इम करणो नहीं छै, घणा भेळा रहितो दुखी, दोय जणां में सुखी, लोळपी थको यूं करणो नहीं है, ए सर्व पचासा रा लिखत में कह्यो छै। _ तथा चोतीसा रे वर्श आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-ग्रहस्थ आगे टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करे तिण ने घणी अजोग जाणणी, तिण ने एक मास पांचू विगै रा त्याग छै। तथा तूंकारो काढ़े तूं सूंसां री भागल तूं झूठाबोली इत्यादिक रो प्राछित कह्यो ते पाळणो । तथा साधां ने आय ने कहणो। गुर देवे ते दंड ळेणो। एहवो चोतीसा रा लिखत में कह्यो, तथा घणा दिन पछे दोष कहे तिण ने 'साध सीखामणी' रा दूहा में अपछंदो कह्यो। निरलज कह्यो, नागड़ो कह्यो। मर्यादा रो लोपणहार कह्यो। तिण री : बात मूळ मानणी नहीं। एहवो कह्यो। तथा घणा दिना पछे दोष कहे तिण टाळोकर ने रास में घणो निषेध्यो ते गाथा
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था