________________
तथा रास में पिण जिला ने घणो निषेध्यो छै तथा पचासा रा लिखत में पिण जिला ने निषेध्यो तथा 'गुरु सूकावे तो उभो सूके' इण ढाळ में जिला ने निषेध्यो तथा अविनीत री ढाळ में पिण जिला ने घणो निषेध्यो
१
'छाने - छाने टोळा में जिलो बांधे, गुर आगन्या विण आपरे छांदे । तिण संजम सहित खोई परतीत, इसड़ा भारी कर्मा अवनीत ॥ गुरु सूं चेला रो मन फाड़े, बले टोळा में मूर्ख भेद पाड़े । कूड़े कपट कर बोले विपरीत, इसड़ा भारीकर्मा अवनीत ॥
२
१
तथा दशमा प्राछित री ढाळ में पिण जिला ने निषेध्यो ते गाथारहे एक आचार्य रा शिष भेळा, कुल मांहे वसे सहु मन मेला । त्यांमें भेद पारण उदमी थावे, तिण ने दसमों प्राछित आवे ॥ २ और साधां रा छिद्र जोवे तांम, तिण ने हेलवा निदंवा रे काम | दोष भेळा कर-कर पछे उड़ावे, तिण ने दसमों प्राछित आवे || कुल गण में भेद पाड़े केइ, हंस्या ने छिद्र तणो पेही । सावज प्रश्न बारुं वार बतावे, तिण ने दसमो प्राछित आवे ।। ठाणा अंग तीजे ने पांचमें ठाणे, त्यांरा भेद अनेक पंडित जांणे । झरा भेद न्यारा थावे, उत्कष्टो प्राछित दसों आवे ||
३
४
sti पिपा जिला ने निषेध्यो । तथा पचासा रा लिखत में कह्यो किण ही साध आय्य में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहिणो । अथवा गुरां ने कहणो । पिण ओरां ने न कहिणो । घणा दिन आड़ा घालने दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उहीज छै ।
तथा बावना र वरस आर्य्यां रे मरजादा बांधी तिण में कह्यो - " दोष देख्यां ततकाळ धणीने केहणो, के गुरां ने कहणो, पिण ओरां ने न कहिणो । किण ही आर्य्या ने दोष जाण ने सेव्यो हुवे ते पाना में लिखिया बिना विगै तरकारी खाणी नहीं कदाच कारण पड्यां न लिखे तो ओर आय ने कहिणो । सायद करने पछै पिण बेगो लिखो । पिण बिना लिख्यां रहिणो नहीं। आय ने गुरां ने मूंढ़ां सूं कहिणो नहीं मांहोमां अजोग भाषा बोलणी नहीं। कोई साधसाधवियां रा अवगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै । इतरो कहणो-स्वामी जी ने कहिज्यो” ए सर्व बावनां रे वर्स कह्यो ।
तथा गुणसठा रे वर्स मर्याद बांधी - "कदा कर्म धको दीधां टोळा सूं टळे उण रे टोळा रा साध-साधव्यां रा अंस मात्र हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा अनंत सिद्धां री ने पांच पदां री आण छै। पांचू इ पदां री साख सूं पचखांण छै । किण ही साध-साधव्यां री संका पड़े ज्यूं बोलण रा पचखांण छै ।" एहवो गुणसठा रे वर्स को छै । तथा संवत् अठारे बत्तीसा रे वर्स स्वामी भीखणजी विनीत अविनीत री चोपी जोड़ी, तिण में अवनीत रा लक्षण ओळखाया।
१. लय - एहवा भेषधारी पंच 1
सातवीं हाजरी : २२१