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२१ ए भाव कह्या विनीत अविनीत रा, सांभळ ने नर नार।
सतगुर रो विनो करो, तों पामौ भव पार॥ अथ अठे विनीत अविनीत रा लक्षण ओळखाया। विनीत ने गुणग्राही रा गुण वर्णव्या। अविनीत कृतघ्न रा अवगुण बताया। ए भाव सुण ने उतम जीव गुण ग्रहे। बले श्री भीखणजी स्वामी री-मर्याद सुध पाळे।
तथा चोतीसा रा लिखत में आर्यां रे मर्यादा बांधी ते कहै छै "टोळा रा साध आर्थ्यां री निंद्या करे तिण ने घणी अजोग जाणणी। तिण रे एक मास पांचूं विगे रा त्याग। जित री वार करे जितरा मास पांचूं विगै रा त्याग छ।
तथा बावनां रा लिखत में आर्यां रे मर्यादा बांधी-किण ही आल् दोष जाणने सेव्यो हवे ते पाना में लिख्या विना विगै तरकारी खाणी नहीं कदाच कारण पड्या न लिखे तो ओर आ· ने कहणो। सायद करने पछे पिण बेगो लिखणो। पिण बिना लिख्यां रहिणो नहीं। ए आयने गुरां ने मूहढ़ा सूं कहणो नहीं। मांहोमां अजोग भाषा बोलणी नहीं। एहवो बावना रा लिखत में कह्यो।
तथा संवत् १८४५ रे लिखत में कह्यो-टोळा मांहे कदाच कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो टोळा रा साधु-साधवियां रा अंस मात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पड़े आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै ।टोळा मा सूं फाड़ने साथे ळे जावा रा त्याग छै। उ आवे तो ही ले जावा रा त्याग है। टोळा मांहे नै बारे नीकल्यां पिण आगण बोलण रा त्याग छै। माहोमां मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन बात करणी। भागहीण हुवे सो उतरती बात करे, भाग हीण ते सुणे तथा सुणी आचार्य नै न कहे ते पिण भागहीण तिण ने तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी।
१ आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो।
गिहत्था वि णं पूंयति, जेण जाणंति तारिसं।। २ आयरिए नाराहेई, समणे यावि तारिसो।
गिहत्था वि णं गरहंति,जेण जांणति तारिसं।
इति 'दशवैकाळिक में ते मर्यादा आज्ञा सुध आराध्यां इहभव परभव में सुख कल्याण हुवे।
एह हाजरी रची। संवत् १९१० का जेठ विद बगतगढ़ मध्ये।
१. दसवेआलियं,५/२/४५,४०
छठी हाजरी : २१९