Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६ कोइ' साप पड्यो थो उजाड़ में चेत नहीं सुध काय। तिण सर्प री अणुकंपा आणने, मिश्री घाली ने दूध पाय ।।
भाव सुणो अवनीत रा॥ ७ ते सर्प सचेत थया पछे, आड़ो फिरियो खावा ने आय।
जो उ लूंठो हुवे तो उण दे दाब दे, काचो हुवे तो डंक दे लगाय॥ ८ सर्प सरीषा अवनीत मानवी, एकल फिरे ज्यूं ढोर रुळीयार।
त्यां ने समकित चारित्र पमाय न, कीधो मोटो अणगार।। ___ एहवो उपगार कियो तिको, ततकाळ भूले अवनीत।
बले उळटा अवगुण बोले गुर तणा, उण रे सर्प वाळी छै रीत॥ आहार पांणी कपड़ादिक कारणे, ते पिण झूठो झगड़ो मांडे।
इण ने उपरलो हुवे तो दाबै दंड दे, आघो काढ़े ते उळटो भांडे।। ११ सर्प ने दूध मिश्री पाया पछै, डंक देवे ते सर्प गेरी।
ज्यूं ओ समकत चारित ळिया पछै, हुवो साधां रो वेरी।। १२ बले खाणां पीणां रो हुवो लोळपी, आप रा दोष मूळ न सूजे।
उ छेड़विया सूं सांहमों, मंडे, बले क्रोध करे तन धूजे॥ १३ तिण ने दूर करे तो दूसमण थको, बोले घणो विपरीत।
असाध परूपे सगळा साध ने, साच बोलण री नहीं रीत ।। १४ बले प्राछित देने मांहे लिये, तो मांहे आवे ततकाळ।
इसड़ा अजोग अवनीत रो, साच मांने अज्ञानी बाल ।। १५ ज्यांने भागल असाध परूपियां, त्यां में प्राछित ले मांहे आवे।
कदे कर्म जोगे हुवे एकलो, तिण ने बुधवंत मुहढ़े ने लगावे॥ १६ सुगुरा साप ने दूध पाया थकां, तो उ करे पाछो उपगार।
तिण ने धन देइने धनवंत करे, बले दीठा हुवे हरष अपार ।। १७ ज्यूं केइ आपछांदे था एकला, पिण सरल परणामी ने सुध रीत।
तिण ने समजाय ने संजम दियो, ते आज्ञा पाळे रूड़ी नीत॥ १८ कीधो उपगार कदे नहीं वीसरे, सर्व देही त्यारे काज सूंपै।
त्यांरो दरसण देख हरषत हुवे, सर्व काम में धोरी ज्यूं जूपै॥ १९ तिण ने समकत ने संजम बेहु, रूचिया अभिंतर पूरा।
ते चलावे ज्यूं चाले छांदो रूंधने, पाछो उपगार करण ने सूरा॥ २० बले गांवा नगरां फिरतां थकां, सदा काळ करे गुण ग्राम।
ते सुवनीत गुणग्राही आतमा, त्यांने वीर वखाण्यां ताम॥ १. लय-चन्द्रगुप्त राजा सुणो। २१८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था