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एकंत मिरषावादी अन्याई छै। किण ने खेत्र काचो बतायां किण ही ने कपड़ादिक मोटो दीधां इत्यादिक कारणे कषाय उठे जद गुरवादिक री निंद्या करण रा अवगुणवाद बोलण रा मांहोमांहे मिलने जिलो बांधण रा त्याग छै। अनन्ता सिद्धां री आण छै। डाहा होवे ते विचार जोइ जो। लूषे षेतर तो उपगार होवे तो ही न रहे आछे तर उपगार न होवे तो ही पर रहे, यूं तो साध ने करणो नहीं चोमासा तो अवसर देखे तो रहणो पिण शेषे काळ तो रहिणो हीज। किण री खावा पीवादिक री संका पड़े तो उण ने साध कहे-बड़ा कहे ज्यूं करणो। दोय जणां तो विचरे आछा-आछा मोटामोटा साताकारिया क्षेत्र लोळपी थका जोवता फिरे, गुरु राखे तठे न रहे, इम करणो नही छै। घणां भेळां रहिता तो दुःखी, दोय जणां में सुखी, लोळपी थको यूं करणो नहीं छै। ए सर्व पचासा रा लिखत मैं कह्यो छै।
तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो-"मांहोमाहि जिलो बांधे तिण में महाभारीकर्मो कह्यो, विस्वासघाती कह्यो, इसड़ी घात पावड़ी किया अनंत संसार नी साई कही।"
तथा बावनां रा वर्स लिखत में कह्यो-दोष देख्यां ततकाळ धणी ने केहणो के गुरां ने कहणो पिण ओरां ने न कहिणो ए मर्यादा लोपवा रा सर्व साध-साधव्यां रे अनन्ता सिद्धां री साख सूं पचखांण छै। तथा वनीत अवनीत री चोपी ढाळ ७ मी में एहवी गाथा कही.१ जो दोष लागो देखे साधने, तो कह देणो तिण ने एकंतो रे। जो उ माने नहीं तो कहणो गुरु कने, ते श्रावक छै बुधवंतो रे॥
सुवनीत श्रावक एहवो ।। २ प्राछित दिराय ने सुध करे, पिण न कहे ओरां पास।
ते तो श्रावक गिरवा गंभीर छै, वीर वखाण्यां तास॥ ३ उण रे मुंहढे तो दोष कहे नही,उण रा गुर कने पिण न कहे जाय। और लोकां आगे कहितो फिरे, तिण री परतीत किण विध आय॥
अवनीत श्रावक एहवा।। ४ वले साधां ने आय वंदना करे, साधवियां नै न वांदे रुड़ी रीत।
त्यांने श्रावक श्रावका म जाणजो, ते तो मूढमती अवनीत॥ ५ तिण श्री जिन धर्म न ओळख्यो, बले भण २ ने करे अभिमान।
आप छांदे माठी मति उपजे, तिण ने लागा नहीं गुर कान॥ इहा गाथा में विनीत अवनीत श्रावक रा लिखण कह्या बले आगल तिणहीज ढ़ाळ में सुगरा-नगुरा साप रो दिष्टंत देइ कहे छै१. लय-चंद्रगुप्त राजा सुणो।
छठी हाजरी : २१७