Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ६
सेवा जिन मुनि नी कीजै, सेवा थी बंछित सीजै जी। सेवा जिन बुनि जी कीजै, लाहो नरभव नो लीजै जी॥ध्रुपदं।
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कह्यो सूत्र उवाई मांह्यो, जिन सेवा महा सुखदायो।। इहभव परभव में जाणो, अति सुख ने खेम कल्याणो। दूजै शतक भगवती मांह्यो, वर पंचमुद्देशे वायो।। इहभव परभव में जाणी, मुनि सेवा महासुखदाणी।। मुनि सेव कियां थी पावै, दश बोलां नी प्राप्ति थावै।। मुनि सेव्यां सुणवो पावै, पछै ज्ञान विज्ञानज थावै॥ पचखांण संयम सुखदायो, फळ तास अनाश्रव थायो।। तप ने बलि कर्म बोदाणो, अक्रिया सिद्धि निर्वाणो॥ तिहां आत्मिक सुख विलसावै, तिहां सदा काळ सुख पावै।। सेवा थी मिटै कुलच्छन, जड़ नर पिण होय विचक्षण॥ शुभ लच्छन सेवा थी पावै, इहभव पिण आनंद थावै।। परभव सुर शिव सुख जाचै, सेवा थी गहघट माचै ।। गोतम जिन संगत कीधी, गणधर थया परम प्रसिद्धि ।। उववाई दशमें अंगे, आख्या वर पाठ उमंगे। मन सराप-अनुग्रह-समर्थ, इम वचन काय पिण अर्थ।। मुनि सेव्यां सुप्रसन्नज थायो, तसु जय-जयकार जणायो। अशातना अबोधन पावै, इहभव पिण मँडो थावै।। महामुनि जे अतिशय धारी, तेहना ए गुण भारी॥ इम जाण मुनि पद सेवो, वर शीख हिया में बेवो । उगणीसै सतरै उदारू, बिद फाल्गुन अष्टम वारू॥ जय-नगरी जोड़ जणाणी, जयजश सुख संपति जाणी।।
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१. लय-नई बुरज पर बंगलो......
२. श्राप।
उपदेशरी चौपी : ढा०६ : १४३