Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भक्त के ळक्षण
ज्ञान श्रेय अभ्यास थी, ध्यान ज्ञान थी शिष्ट। ध्यान थकी तज कर्म फळ, तेहथी शांति विशिष्ट॥ सर्व भूत परद्वेष तजी, सर्व मित्र सम जान। ममत भाव अहंकार तज, सुख दुख भाव समान। पर नै दुखदाई नहीं, पर थी आप न दुक्ख। तजै हर्ष उद्वेग भय, ते मुझ भक्त प्रत्यक्ख॥ निर्वाछा शुचि दक्ष मन, उदासीन नहीं धंध॥ ___ आरम्भ त्यागी सर्वथा, ते मुझ भक्त सुनंद॥
सुख दुख हरख न सोग ए, चिंता कांक्षा नाहि। पुन्य पाप बेहुं तजै, ते मुझ भक्त ओछाहि॥ शत्रू मित्री सम गिणै, तिमज मान अपमान। शीत-उष्ण सम दुक्ख-सुख, वर्जत संग सुजान। निन्दा-स्तुति में तुल्य मन, मौन धार सन्तुष्ट। घर त्यांगी अरु स्थिरमती, सोभै भक्त पियष्ट॥
(गीता अध्याय १२ गा. १२, १३, १५ से १९)
१५८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था