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एकलौ साधु, एकली बाई तथा आर्यां सूं बात न करणी । कर्नै ऊभो पिण न रहणौ, इण मर्यादा में चूकां मंडल्या ५१ । इम साध्वी एकली, एकला भाई तथा साधू कनैं ऊभी न रैहणौ, बात न करणी, इण मर्यादा में चूकां मंडल्या
५१
और साध री पात्री रोकै बिनां कह्या, तौ मंडल्या च्यार पांच साधु देवै तै
लेणा ।
इमज चिलमलि' उडै तौ मंडल्यां री रीत छै ।
कारण में बोझ न उपाडै, तेतौ बोझ कारण मिटियां पछै उपाड़णौ ।
पांती रौ काम साहज्य वाळां नै करणो ।
कारण में गौचरी न उठै तौ तथा रात्रि दिशां जाय, कारण में पडिकमणौ बेठ करै, हाजरी न सुगेँ, दिने तथा पौहर रात्रि पहलां नींद लेवै तथा आण रा ऊन्हो आहार मंगावै, तौ च्यार पांच साधु तथा सिरपंच साधु ने भ्यासै पको कारण तौ मंडलीया न देवै, अनै थोड़ा कारण भ्यासै तो ते मंडलीय दीयां मन बिगाड़े तो शेख अबदुळ मुफ्त रौ साथी अविनीत अजोग्य कहणौ । संवत् १९११ वैशाख सुदि १० गुरुवार ।
(हिन्दी अनुवाद)
अकेला साधु, अकेली बहन तथा साध्वी से और अकेली साध्वी, अकेले साधु तथा अकेले भाई से बात न करें व पास में भी खड़ी न रहे। इस मर्यादा का भंग होने पर प्रायश्चित्त ५१ मंडलिया।
दूसरे साधु की पात्री उसकी आज्ञा बिना काम में ले तो पंच-रूप में अधिकृत साधु जितना प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकृत करे।
इसी प्रकार चिलमलि उड़े तो प्रायश्चित्त की व्यवस्था है।
रुग्णावस्था में समुच्चय का वजन न ले तो स्वस्थ होने पर उतना बोझ उठाये।
रुग्णावस्था में उसके विभाग का काम साझ वाले करें!
कारण में गोचरी न जाए, रात्रि में पंचमी समिति का कार्य करे, प्रतिक्रमण बैठकर करे, हाजरी की शिक्षा न सुने, दिन में या प्रहर रात बीतने से पहले सोए तथा सांय काल के समय गर्म आहार मंगाए -आदि के लिए अधिकृत साधु या सरपंच को रोग का पक्का भरोसा हो जाए तब प्रायश्चित्त न दे और थोड़ा रोग लगे तब प्रायश्चित्त दे, ऐसे प्रसंग पर अनमना बने उसे 'शेख अब्दुल मुफ्त का साथी, अविनीत, अयोग्य समझा जाए।
(संवत् १९११ वैसाख शुक्ला १० गुरुवार)
१.
पर्दा । (पारसी भाषा का शब्द)
१६२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था