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किण ही साध मरजादा उलंघवो कीधो अथवा आगन्या मांही नहीं चालिया। अथवा किण ही नै अथिर परिणामी देख्यो। अथवा टोळा मांही टिकतो न देख्यो तो गृहस्थ नै जणावण रा भाव छै। साध साधवियां नै जणावण रा भाव छै। पछै कोइ कहोळा म्हारी लोकां मांही टोळा मांही आसता उतारी। तिण संघणा सावधानपणै सुद्धपणे चालज्यो। एक-एक नै चूक पड्यां तुरत कहिज्यो। म्हां तांइ कजीयो आणज्यो मती उठै रो उठै निवेरज्यो।' तथा संवत् १८५२ रै वरस मर्यादा आर्या रै बांधी, तिण में पिण एहवो कह्यो “किण ही आर्या आज पछै अजोगाइ कीधी तो प्रायश्चित तो देणो, पिण उणनै च्यार तीर्थ में हेलणी निंदणी पडसी, पछै कहोला म्हानै भांडै छै म्हारो फितूरो करै छै, तिंण सूं पहिला ही सावधान रहिज्यो। सावधान नहीं रही तो लोकां में मूंडी दीसोला, पछै कहोला म्हानै कह्यो नहीं" बावना रा लिखत में पिण भीखणजी स्वामी इण रीत आज्ञा विना प्रवरते तथा मरजादा लोपै तिण नै निषेध्यो छै। तथा बलि 'हिवै सांभळज्यो नर नार' या साध सिखावण री ढाळ में भीखणजी स्वामी मरजादा बांधी दोष देखै तो ततकाळ कहिणो पिण घणा दिन पछै न कहिणो तिण ढाळ रा दोहा में एहवो कह्यो
दोहा १ अरिहंत सिद्ध नै आयरिया, उवझाय सगळा साध।
मुक्ति नगर ना दायका, ए पांचू पद आराध ।। २ वांदीजै नित एहनै, नीचो सीस नमाय।
यारां गुण ओळख वंदणा किया, भव-भव ना दुख जाय।
साध-साधवी श्रावक श्राविका, जिन भाख्या तीर्थ च्यार। __ मोटी छोटी माळा गुणरतन री, त्यांनै सीख कहुं हितकार। ४ साध-साधवी सगळां भणी, चालणो इण मरजाद ।
दोष देखै तो तुरत बतावणो, ज्यूं वधै नहीं विषवाद ।। ५ कोइ कषाय वस दुष्ट आतमा, और साधां सिर दै आज।
त्यां में घणा दिना पछै दोष कहै घणा, तिणरो किणविध काढै निकाळ।। ६ औरां में दोष बतावै, घणा दिनां पछै, तिण री मूळ न मानणी बात।
आ बांधी मर्यादा सर्व साध नी, ते लोपणी नहीं तिल मात॥
१.उड्डाहा
गण विशुद्धिकरण बड़ी हाजरी : १८५