Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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७ थे तो कीधो अकारज मोटो, जिण मारग में चलायो खोटो।
थारी भिष्ट हुई मत बुध, हिवै प्राछित ळे होय सुध। ८ उण नै पूछ्यां आरै होय, तो उण नै प्राछित देस्यां जोय।
जो उ पूछयां आरै न होय, तो उण सूं जोर न लागै कोय॥ उण री तो थारां कह्या थी संक, पिण तू तो दोषीलो निसंक।
इम कही उण नै घालणो कूड़ो, प्राछित न ले तो करणो दूरो। १० ज्यूं कोई बले न दूजी वार, किण रा दोषण ढाके ळिगार।
दोष ढाक्या हुवै घणी खुवारी, टांको झडै तो अनन्त संसारी॥ ११ संका सहित नै राखैमांय, और साध दोषीळा न थाय।
दोषीला नै जांणी राखै मांय, तो सगळाई असाधु थाय॥ १२ छिद्रपेही छिद्रधार राखै, कदे काम पड्या कहि दाखै।
तिण में साध तणीं नही रीत, तिण री कुण मांनै परतीत।। १३ घणा दिनां कादै दोष विख्यात, तिण री मूळ न मानणी बात।
सुध साधां री आ मरजाद, तिण सूं वधै नहीं विषवाद ।। १४ और साधां में दोषण देखी, तुरत कहै ते निरापेखी।।
तिण रे मूळ नहीं पखपात, तिण री मानणी आवै बात ।।
अथ इहा पिण घणा दिनां पछै दोष कहै तिण नै अन्याइ कह्यो। तिण में साध नी रीत नहीं। तिण री मूळ बात मानणी नहीं, एहवो कह्यो। तथा पचासा रा लिखत में एहवो कह्यो- किणनेई खेत्र काचो बतायां, किणनेइ कपड़ादिक मोटो दीधां इत्या-दिक करणे कषाय उठे जद गुरुवादिक री निंद्या करण रा, अवगुणवाद बोलण रा, एक २ आगै बोलण रा, मांहोमाहै मिलने जिलो बांधण रा त्याग छै। अनन्ता सिद्धां री आण छै। गुरवादिक आगै भेळो तो आपरै मुतळब रहै, पछै आहारादिक थोड़ा घणा रो कपड़ादिक रो नाम लेई अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। इण सरधा रा भायां रै कपड़ा रा ठिकाणा छै विना आज्ञा याचण रा त्याग छै तथा विनीत अवनीत री चोपी री प्रथम ढाळ में एहवी गाथा कही१ 'उ गुर रा पिण गुण सुणनै विलखो हुवै रे,अवगुण सुणनै हरषत थाय रे। एहवा अभिमानी अविनीत तेहनै रे, ओळखाउं भवियण नै इण न्याय रे ।।
अवनीत भारी कर्मा एहवा रे।। २ कोई प्रत्यनीक अवगुण बोलै गुर तणा, अवनीत गुरद्रोही पासै आय।
तो उत्तर पड़ उत्तर न दे तेहने, अभिंतर में मन रळियायत थाय॥
अथ इहां गुरु रा गुण सुण विळखो हुवै तिण नै अवनीत कह्यो कोई अविनीत अवगुण १. लय-श्री जिनवर गणधर मुनिवर।
पंचवीं हाजरी: २१३