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बोले तेहनै पाछो जाब न दे मून राखै मन में रळियात वै यां लखणां अवनीत नै ओळखणो तथा वनीत अवनीत री ढाळ नवमीं में एहवी गाथा कही१ गुरु निषेध्यो सुणै अवनीत, ऊंधा अर्थ करे विपरीत ।
नहीं विनौ करण री नीत, तिण सूं बोले कपट सहीत।। २ उण तूं विनो कियो नहीं जावै, तिण सूं गुर नै कुगर सरधावे।
आपणां दोष सगळा ढाकै, साधा सिर आळ देतो ना साकै। ३ ते तो गुर सूं पिण नहीं गुदरै, तिण रा कारज किण विध सुधरै।
तिण नै करै टोळा सूं न्यारो, तो उ चोर ज्यूं करे बिगाड़ो॥ ४ सगळां साधां नै कहै असाध, बलै करै घणो विषवाद।
सर्व साधां रो होय जावै वैरी, के एहवा छै अवनीत गैरी। ५ तिण नै लोक आरै करै नांहीं, तो उ प्राछित ले आवै मांही।
ज्यांनै असाध परूप्यां मुख सूं, त्यांरा वांदै पग मस्तक सूं। ६ जो उ बलै न चाले सूधो, तो उण नै करदै गण सू जूदो। __ जब अवनीत रे उवाहीज रीत, न्यारो किया बोलै विपरीत। ७ लोकां नै साधा सूं भिड़कावै, आप बुगलध्यानी होय ज्यावै।
बलै कूड़ कपट रो चाळो, आत्मा नै लगावै काळो।। ८ उ तो अवगुण काढ़े अनेक, बुधवंत न मांनै एक।
एहवा अवनीत छै गुरद्रोही, तिण आत्म पूरी विगोई ।। ९ जे माने अवनीत री बात, ज्यां रा घट माहै आवै मिथ्यात।
एहवा अविनीत अवगुणगारा, ज्यां सू बुधवंत रहसी न्यारा॥ . १० इम सुण २ नै नरनारी, छोड़ो कुगुरु हीण आचारी।
अवनीत सूं रहसी दूरा, ते तो परमेसर रा पूरा ।। ११ वनीत सुण २ पांमै हरख, प. अवनीत रे मन धड़क।
ते तो रहै चोर जिम राच, लेवै आपणै ऊपर खांच ।। १२ वनीत अवनीत रा एहलाण, इम ओळख कीजो पिछाण।
___ रुड़ी रीत सू काढै नीकाळो, अवनीत सूं दीजो टाळो॥ १. लय- विनै रा भाव सुण २ गूंजे। २१४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था