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हुवै ते आरै हुयज्यो। विनै मार्ग चालण रा परिणाम हुवै,गुरू नै रीझावणा हुवै, साधपणो पाळण रा परिणाम हुवै ते आरै हुयज्यो। आगे साधां रे समचे आचार री मरजाद बांधी ते कबूल छै। बले कोई आचार्य मरजादा बांधे ते याद आवै ते पिण कबूल छै" एहवो पैंताळीसा रे वर्ष कह्यो छै।
तथा पचासा रा लिखत में जिला नै निषेध्यो छै। तथा रास में पिण जिला ने घणो निषेध्यो छै। तथा 'गुरु सूकावे तो उभो सूकै' इण ढाळ में पिण जिला नै निषेध्यो छै। १ गण में रहूं निरदावै एकळो, किण सूं मिलनै न बांधू जिळो।
किण नै रागी करै राघू म्हारो, एहवो पिण नहीं करूं विगारो॥ इम गुरां री आज्ञा विना आपरो रागी करै तिण नै बिगाड़ा में घाल्यो छै। ते माटै जिलो बांधण रा सर्व साध साधव्यां रै अनन्ता सिद्धां री साख सूं त्याग छै। तथा घणा दिनां पछै दोष न कहिणो, ठांम २ कह्यो छै। साध सीखावणी ढाळ रा दूहा में पिण घणां दिना पछै दोष कहै, बले झूठो विषवाद करै, तिण नै अपछंदो कह्यो, निर्लज कह्यो, नागड़ो कह्यो, मर्यादा रो लोपणहार कह्यो, कषाय दुष्ट आत्मा रो धणी कह्यो छै।तथा साध सीखावणी ढाळ में पिण एहवी गाथा कही२ घणा दिनां रा दोष बतावै, ते तो मानवा में किम आवै।
साच झूठ तो केवळी जाणै, छद्मस्थ प्रतीत नांणै।। २ हेत मांहे तो दोषण ढ़ाकै, हेत तूटां कहितो नहीं सांकै।
तिण री किम आवै परतीत, तिण नै जाण ळेणो विपरीत॥ ३ इण दोषीला सूं कीयो आहार, जब पिण नहीं डरियो लिगार।
तो हिवै आळ देतो किम डरसी, इण री परतीत मूरख करसी॥ ४ इण दोष क्यांने किया भेळा, इण क्यूं न कह्यो तिण वेळा।
इण में साध तणी रीत हुवै तो, जिण दिन रो जिण दिन कहेतो॥ ५ जब उ कहै मैं न कह्यो डरतै, गुर सूं पिण लाजां मरतै।
तब उणनै बलै कहिणो पाछो, तोनै किण विध जांणां आछो॥ ६ थे तो दोषीलां सूं कियो संभोग, थारा वरत्या माठा जोग।
थारी प्रतीत नावे म्हांनै, इण रा दोष राख्या थे छानै॥
१.लय : विनै रा भाव सुण-सुण गूंजे। २.लय : विनै रा भाव सुण-सुण गूंजे । २१२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था