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६ जो यामें दोष कह्या ते साचा, तो ही थे तो निश्चै नहीं आछा।
जो झूठ कह्या तो विशेषै भुंडा, थे तो दोनूं प्रकारै बूडा॥ थे दोषीलां नै वांद्यां कहो पाप, भेळा पिण रह्या कहो संताप। ' दोषीला नै देवै आहार पाणी, बले उपधादि देवै आणी॥ ८ हर कोई वस्तु देवै आण, करै विनय व्यावच जाण।
दोषीलां सूं करै संभोग, तिण रा पिण जाणज्यो माठा जोग॥ ९ इत्यादिक दोषीला सूं करंत, तिण पाप कह्यो छै एकंत।
ए थे जाण किया सारा काम, ते पिण घणा वरसां लग ताम॥ १० घणा वरस किया एहवा कर्म, तिण सूं बूड गयो थारो धर्म।
निरंतर दोष सेवण लागा, हुवा व्रत विहुणा नागा। ११ थे कीधो अकारज मोटो, छान-छानै चलायो खोटो।
थे तो बांध्यो कां रो जाळो, आत्मा नै लगायो काळो। १२ थे गुरु नै निश्चै जाण्या असाध, त्यांनै वांद्यां जाणी असमाध।
त्यांराहिज वांद्या नित पाय, मस्तक दोनूं पग रै लगाय॥ १३ यां सूं कीधा थे बारै संभोग, ते पिण जाण्यां सावध जोग।
सावद्य सेव्यो निरंतर जाण, थे पूरा मूढ अयाण॥ १४ थे भण-भण नै पाना पोथा, चारित्र विण रह गया थोथा।
थे कहो अर्थ करां म्है कूड़ा, तो थे भण-भण नै कांय बूडा॥ १५ थे विहार करता गाम-गाम, शिष्य शिष्यणी वधारण काम।
किण नै देता बंधो कराय, किण नै देता घर छोडाय॥ १६ बले कर-कर गुरु रा गुणग्राम, चढावतां लोकां रा परिणाम।
बले थे गुरु नै खोटा जाण ताही, औरां नै क्यूं न्हाखता यां माही॥ १७ पोतै पड़िया जाणै खाड मांय, तो औरा नै न्हाखता किण न्याय।
ओरां रो डबोवण रो उपाय, जाण-जाण करता था ताय॥ १८ पांच पद वंदणा सिखावता तायो, तिण में गुरु रो नाम धरायो।
तिण गुरु नैं वांद्यां जाणता पाप, तो औरां नै कांय डबोया आप॥
गण विशुद्धिकरण बड़ी हाजरी : १८७