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पेंताळीसा रा लिखत में पिण कह्यो - टोळा मांहे पिण साधां रा मन भांगनै आप आप रै जिले करै, ते तो महाभारीकर्मो जाणवो, विसवासघाती जाणवो। इसड़ी घात पावड़ी करै ते तो अनन्त संसार नही साई छै । इण मर्याद प्रमाणै चालणी नावे तिणने संलेखणा मंडणो सिरै छै । तथा पचासा रा लिखत में पिण जिला ने निषेध्यो । तथा रास में पिण भी भीखणजी स्वामी जिला ने निषेध्यो छै । ते गाथा
ढाल
तिनै गुर कहै सहज में सूधो, तो उ पड जाए मूर्ख ऊंधो। तिण रा लखण घणा छै माठा, उळटा गुरनै कहै करला काठा ॥ गुरु ने करलो काठ कहणो पाछो, ओ तो किरतब जांणियो आछो । तिरी फिर गई सवळी दिष्ट, हुओ जिण मार्ग थी भिष्ट || तिने गुर करो कहै किण वारै, जब उ अवनीत पास पुकारै। जब अवनीत कहै उण नै एम, थे पाछो को नहीं केम || इसड़ी करै अविना री थाप मांहोमांहे कियो त्यारै मिलाप । बले जिलो बांधण रे काज, हिवै कुणकुण करै अकाज ॥ हिवै मिलर नै करै चोरी, गण में करै फातोड़ी। उणरी बात करै उण आगै, जिण विध मांहोमो कळह लागै ।। गुरु सूं पण मेले मूरष डांडी, तिण भेष लेई आत्म भांडी । गुरु सूं चेलो हुवै उदास, तेहवी बात कहै तिण पास ॥ किणनै कहे थां उपर द्वेष, ते अरुबरु ल्यो किनै क थांरी कीधी उतरती, मो आगै पिण कीधी किनै बले कहै छै आम, थानै लोळपी कहै छै
देख |
परती ||
तांम ।
किनै कथां कहता वेणो, इण नै महीं कपड़ो नहीं देणो ॥ किनै कहै थे प्राछित लीधो, ते तो मो आगे कह दीधो । त्यांरी आसता एम उतारे, बले निंद्या करै पूठ लारे ॥ १० किणनै कहै थानै कहता चोरो, किणनै कहै थांसू हेत थोड़ो । किनै कथा कहिता अवनीत, किणनै कहै थारी करे अप्रतीत ॥ ११ केनै कहै थानै नहीं भणावै, किणनै कहै थानै नहीं बतळावै । किनै कहै थानै रोगी जाणै, पिण ओषद कदेय न आणै ॥ १२ किणनै कहै थांनै चौमासे काळ, लांबो खेतर बतावै टाळ । आछै खेतर थां नहीं मेलै, शेषै काळ पिण इमहीज ठेलै | १. लय - विनैरा भाव सुण-सुण गूंजै।
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चौथी हाजरी : २०७