Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ७
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रमनीये ! काहि दूं गुमान भरी हे, रमनीये ! काहि कू गुमान भरी है।
'कमनीये ! काहि कू गुमान भरी हे ॥धुपदं॥ १ रंग रंगीली देही छैल छबीली, मळ मूत्र अशुचि भरी हे ।। २ रुद्र शुक्र सूं तेरी काया ऊपनी, नव मास गर्भ धरी।।
चित का चटका मन का मटका, करती पिण इक दिन काळ हरी। जोवन मद मतवाळी चिरताळी, थाये वृद्ध थया जोजरी॥ तरुणपणै रोगादिक ऊपना; आ प्रत्यक्ष क्षीण पड़ी।। रंग रंगीली तूं तो काया राखै, पिण परभव सूं न डरी॥ संध्या भान तेरी तनु शोभा, क्षिण माहै जाय सरी।। तन बहु वेदन हुवां थी, थारे दुरगंधता पुंज जरी।।
श्रीदेवी सुंदर रमणी चक्री नी, उत्कृष्ट छठी में पड़ी। १० तूं तो जाणै मो सम कुण सुंदर, हूं पुन्यवान सुरी।। ११ पिण इक दिन पाप उदै हुवां परभव, परवश जमां पाने पड़ी। १२ वेतरणी प्रमुख बहु वेदन, तूं सहसी आक्रंद करी॥
इम सुण तूं धर सतगुर सेवा, भावन भाव खरी।। १४ सम्यक्त नै देशवत चारित्र, धारयां तूं पामसै अमरपुरी।। १५ निंदक टाळोकर तूं मत बांछे, ए शीख हिया में धरी॥ १६ ए धाड़वी समकित ना लूटारा, ज्यांरी संगति दूर करी॥ १७ बार-बार स्यूं कहिये तुझ ने, तूं तो स्थिर पद गण में धरी।। १८ गणपति नी पक्की आस्था राख्यां, थारा बांछितं कार्य सरी ।। १९ उगणीशै गुणतीसै चैत्र सुदि, जयजश शिक्षा उच्चरी।।
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१. लय-काहि गुमान कर
१४४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था