Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ८
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जिन वचने प्रतिबूझो रे प्राणी ॥धुपदं॥ १ . काल अनंतै प्राणी नर भव लाधो, आर्य कुल अवतारो रे लाय।
दीर्घ-आयु-बळ पूरण इंद्रिय, रोग रहित तन सारो रे लोय॥ संत समागम आगम वाणी, श्रवण दुलभ सरधानो। पा सामग्री परम सयाणी, धर्मोद्यम चित ठाणो॥ लख चौरासी में रुळियो रे प्राणी, लही जन्म मरण दुख खानी। अनुभ्या दीन अनाथ ज्यूं परवस, भूल्यो सुख में अयाणी॥ काम भोग किंपाक समाना, तज पुद्गळ सुख प्यारो। तन धन जोवन मांन इथर, बीजळ चिमत्कारो॥ अगजा अंगज प्राण पियारा, राज ऋद्धि ठकुराई। संसार में जे जे पुद्गळ लीला, ते वार अनंती पाई। रजनी-सुवणां ज्यूं सर्व विलावै, धर मुख समता आणी। सतगुरु वचन समाधि लयां थी, तृष्णा तृपत बुझाणी। नौका समानो सिवपुर मारग, ज्ञानादिक चित्त धारो। भीम भयंकर भवदधि तारक, सतगुर पंथ नेतारो। चिंतामणी तज काच म राचो, कल्प तजी मत आको। जिन धर्म छोड़ विषै मत ध्यावो, परभव कटुक किंपाको। गीत विलाप नाटक बिटंबना, भूषण भार समानो। नरक निगोद ना पंथ देखाला, भोग मनोहर जानो।। मत गाफळ हुंसीयार थई नै, संजम तप धन सारो। जतन करो विषय इंद्री चोर थी, ज्यूं परभव होय आधारो।।
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१. लय-देखो रे भोळा चेत नाही...... २.अनुभव किये।
३. अस्थिर। ४. रात्रिकालीन स्वप्न।
उपदेश री चौपी : ढा०८: १४५