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ढाळ ३
करिंदा ।
विलसदा ।
केइक शब्दादिक में खूता पुद्गळ सुख नीं प्यासा । जय गणपति कहै मोह कर्म नां जग में जबर तमासा ॥
- केइक
गावै
इक
क नाचै केइक
रोवै, केइक ख्याल
राचै,
केइक रति
केइक हिंसक जीव हणै बहु दया नहीं दिल मांही। इक कूड़ केलवै इक पर धन हरै सदाई। में कळिया केइक परिग्रह कर्म ना जग में
पासा ।
केइक मिथुन काळ जय गणपति कहै मोह
जबर तमासा ॥
केइक क्रोध वसै अति ज्वळता, केइक केइक माया कपट केळवे, केइक केइक राग स्नेह परवस करि, केइक जय गणपति कहै मोह कर्म ना जग में जबर
द्वेष
माया सहित मृषा कै दस बोल ऊंधा आज्ञा बारैं धर्म जय गणपति कहै
मान मच्छरिंदा | लोभिदा ।
जन
केइक कळह करै फुन, केइक पर शिर आळज केइक चुगलीखोर केइक बलि पर परिवादज केइक रति अरति में मुरझ्या, हरख सोग में जय गणपति कहै मोह कर्म ना जग में जबर बोलै इक जन श्रद्धै, कुगरां ना पसूपै, बलि राखें सुख आशा ।। मोह कर्म ना जग में जबर तमासा ॥
मिथ्याती ।
कर
पखपाती ।
१. लय-छंद धमाळ तथा चौरासी में भमता रे
धमासा ।
तमासा ॥
देवै ।
सैवे ।
वासा ।
तमासा ॥
बाजै
स्याणा |
केइक षट्खंड त्रिण खंडाधिप, केइक राजा राणा । केइक सेठ सेन्यापति मानव जग में काम भोग किंपाक तणां फळ, सहै नरक जय गणपति क मोह कर्म ना जग में जबर तमासा ॥
दुःख
त्रासा ।
उपदेश री चौपी : ढा० ३ : १३९