Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ २०
निज पांती में जे रंजै, ते भद्र प्रकृति गुण रासं,
'संविभाग करी लीजै ॥ धुपदं ॥ मुनिवर ने कुण गंजै जी सं० । सहुनें सुखदाइ जासं जी | सं० । सीझै जी ।
ज्यां
जिभ्या - इंद्रिय वस कीजै, तिण सूं बांछित कारज मुज सीख सुगुण धारीजे, लज्या यत्ने राखीजै जी । निज पांती में नही रंजै, तेहनों दुख कहो कुण भंजै। अति खावण पीवण री पिपासा, किम पूरीजे तसु आशा ।। निज पांती में रंगराता, त्यांरे मानसीक सुखसाता । जेहवो मिल्यो करै संतोष, समभावपणै सुख तोषं ॥ पांती में रति नहीं पावै, गमती (वस्तूं) देखी मान जावै, मांगै दूध दही घृत बलि विविध तरकारी
ते पग-पग में
सीदावै ।
मांगंतां लाज
आवै ॥
दाळं,
नवा मोदक खंड
विसालं ।
ताजी, सरसव प्रमुख नी
भाजी |
सुविसालं ।
ने मुरमुरिया |
मांगै फलका चावळ दालं, मांहि सुगंध घृत मांगै घृत तलिया गुलगुलिया, तुरतुरिया मांगै घेवर नै खाजा, इण नैं भोजन मांगै
१. लय-हरी बुरज पर बंगलो । २. दाळ के बड़े ।
न
भावे ताजा ।
मांगै
लापसी नै सीरो, सुख पावै जीव शरीरं ॥ माळपूआ नै खीरं, सुख पावै जीव शरीरं । मांगै बूरो नैं पतासा, दीधां हुवै हरष मांगै पापड़ अति चंगो, इम सुख नावै बाजरी री रोटी नहीं भावे, गहुं री देखी बाजरी री मांगै तो ताजी, लूखी जो तिण नें वेवै, तो बाजरी रो खीच नहीं भावै, कहै उष्ण दूध बड़ादिक
मन
आतो उष्ण चौपड़ी
मुंह बिगाड़ दुख
मुज तनू गरम आफै, तो खातां मन नहीं चित्त नावै, फलका री भावना थोड़ा, विण पांती इम तसु
खीच बाजरी रौ फलका जो आवै
३. बेसन के भुजिये ।
हुलासा ।।
अंगो ।
मुज
जावै ।।
जाझी ।
वेवै ॥
लखावै ।
धापै ॥
भावै ।
फोड़ा ॥
शिक्षा री चोपी : ढा० २० :
१११