Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
ढाळ २७
। ऊंच (सुगुण) नरां रो उत्तम मारग॥ ध्रुपदं॥
उपगारी नो उपगार न भूलै, ते गिरवा गुणवंतो रे। अपराधकरि ने 'नमणखाधां'२ पछै, मन में न राखै संतो रे॥ नमण करी निज अवगुण जाण्यां, 'खून गुनो'३ बकस देवै। रोष लहर मन में नहिं राखै, अपूठो तसु गुण लेवै॥ सापुरुष धीर सुजाण नै गिरवा, तन मन बहु सुखदाई। आगलो अवगुण मूळ न पेखै, पोखै पीत सवाई। आगमियां काळ माहै नवि चूक, छांड दियै दृष्टि खोटी। तठा पछै त्यां सूं खटक न राखै, मोटां री मति मोटी॥ बले कोई चूक देखै ते तिण नैं, निशंकपणे सुध कहीजै। पिण रुड़ी रीत राखै मुख प्रीते, त्यां सूं लहर मूळ न राखीजै॥ अनेक वार कोइ दोष लगावै, डंड लेवै रुड़ी रीतो। तिण सूं पिण लहर मूळ न राखै, जोयलो सूत्र नशीतो॥ संवत् उगणीसै आसोजी सातम, सापुरुष विरद बताया। नमण खाधां पछै लेहर न राखै, संत सती सुखदाया।।
१. लय-स्थिर स्थिर चेतन। २. त्रुटि स्वीकृत करने पर।
३. खून करने का अपराध। ४. सज्जन।
शिक्षा री चोपी : ढा० २७: १२५