Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ३०
धन धन धन धन गुणवंता भणी रे॥ध्रुपदं॥
बालपणां में केइ संजम लियै रे, केयक जोवन वय रे मांय रे। परभव नी खरची करता महामुनि रे, सम परिणाम में रहै सवाय रे।। बालक वय में केइ घर में छतां, धारे छै सील वरत सिरदार। केयक जोवन वय में व्रत आदरै, त्यां साहमी राखै दिष्ट उदार॥ आरत ध्यान थकी दुरगति मिलै, नरक निगोदे दुख भरपूर । काम भोग पिण दुख दाता कह्या, इम जाणी नै आर्त कर दै दूर। मेघ मुनि आठ रमण तज व्रत धस्यो, छांडी बलै सालभद्र बत्तीस कृष्णादिक नी राण्यां व्रत धर शिव गई,त्यां साहमी राखै दृष्ट जगीस॥ पुत्रादिक पुन बांधी आया इहां, भोगवसी ते पोता रा पुन । त्यां री पण चिंता मूळ करै नहीं, कर्म काटण री राखै धुन॥ लाभ-अलाभ सुख-दुःख में सम रहै, त्यां नै बखाण्या जिनेन्द्र देव। सामायक पोसादिक सुभ ध्यान में, सफल दिन रात्र करै नित्यमेव॥ अल्प दिवस मांहै करणी थकी, वैमानिक देव हुवै श्रीकार। पछै अल्प भव कर शिवपद संचरै, करणी रा ए फल लहै उदार॥ काम नै भोग थकी इण जीवड़े, बले पुत्रादिक धन री ममत करेह। नरक निगोद तणां दुःख भोगव्या, इम जाणी न करै किणसूं नेह॥ समत् उगणीसै अष्टादस समै, जेठ विद अष्टम मिति उदार। ए दीधी शिख्या हळुकर्मी भणी, जयजश गणपति महा सुखकार॥ प्रतीत पक्की सतगुरु तणी, जो करडोइ आय पड़े काम। तो पिण आसता नवि उतरै, ते सुवनीत अमाम।। इसा विरला पुरुष संसार में, पुरण सतगुरु सूं पीत।
ज्यां रे आसता मूळ न उत्तरै, ते गया जमारो जीत॥ १२ सतगुरु तो पारस सारिखा, कर दीयै आप सरीख ।
आसता पूरण शिष तणी, तो शिष ने धारणीया हिज शीख॥ १३ जो भाग्य प्रबल हुवै गुरु तणो, तो शिष्य रे है गुरु नी प्रतीत।
पूर्ण वरतै अंग चेष्टा सर्व कार्य में सुरीत॥
१. लय-पाखंड वधसी आरे पांचमे रे।
शिक्षा री चोपी : ढा० ३० : १२९