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धीरजवान पुरुष परम प्रमोद संवेग पावत संत सती
'पावत सुख चरण करण गुणधारी ॥ ध्रुपदं ॥
लिगारी ।
गुणधारक, आरत नाणै हर्ष धर, वयण अडोल गुणधारी, एतो सर्व जीवां
विचारी ॥
सुखकारी ।
सम रम साम राम
पावत सुख चरण करण गुणधारी ॥ तणीं पर, जीव सुगुण सिरे भारी । प्रत्यक्ष, सूरत महा सुखकारी ॥ सुवनीत, शासण ना याद आयां तन मन हुलसावै, गुरु दिल हर्ष सुर नर सेव करै वृद्धि संपति, शरणागत निश दिन हर्ष हिया मैं वधावै, शंक न राखै मंगल आदि थाप्यो चित स्थिर, मन मांहै गाढ़ी धारी । कल्पवृक्ष कामधेनु चिंतामणी, सुवनीत गण- श्रृंगारी ॥ शिष्य सुवनीत रा विविध मनोरथ, पूरवै गुरु हितकारी । किंचित् कसर पड्यां शिष्य सुवनीत, मन में न आणै लिगारी ॥ हर्ष हार सर्वदा हिये राखणो, ए सुगुरु शीख सुखकारी । उगणीसै नव आसू बीज विद जयजश, आनंद पाया अपारी ॥
श्रृंगारी । अपारी ॥ सुखकारी । लिगारी ॥
ढाळ ३२
सरस हर्ष साम राम परम वनीत प्रीत हद
जीव
१. लय-आवत मेरी गलियन
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था