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________________ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ धीरजवान पुरुष परम प्रमोद संवेग पावत संत सती 'पावत सुख चरण करण गुणधारी ॥ ध्रुपदं ॥ लिगारी । गुणधारक, आरत नाणै हर्ष धर, वयण अडोल गुणधारी, एतो सर्व जीवां विचारी ॥ सुखकारी । सम रम साम राम पावत सुख चरण करण गुणधारी ॥ तणीं पर, जीव सुगुण सिरे भारी । प्रत्यक्ष, सूरत महा सुखकारी ॥ सुवनीत, शासण ना याद आयां तन मन हुलसावै, गुरु दिल हर्ष सुर नर सेव करै वृद्धि संपति, शरणागत निश दिन हर्ष हिया मैं वधावै, शंक न राखै मंगल आदि थाप्यो चित स्थिर, मन मांहै गाढ़ी धारी । कल्पवृक्ष कामधेनु चिंतामणी, सुवनीत गण- श्रृंगारी ॥ शिष्य सुवनीत रा विविध मनोरथ, पूरवै गुरु हितकारी । किंचित् कसर पड्यां शिष्य सुवनीत, मन में न आणै लिगारी ॥ हर्ष हार सर्वदा हिये राखणो, ए सुगुरु शीख सुखकारी । उगणीसै नव आसू बीज विद जयजश, आनंद पाया अपारी ॥ श्रृंगारी । अपारी ॥ सुखकारी । लिगारी ॥ ढाळ ३२ सरस हर्ष साम राम परम वनीत प्रीत हद जीव १. लय-आवत मेरी गलियन १३२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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