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ढाळ २८
प्रभु के वच प्यारे ॥धुपदं॥
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ओ तो श्रेणिक नाम राजा, तिण रा जग माहै सुयश दिवाजा॥ तिको पहिली नरक माहै पड़ियो, ओ तो दुख जंजीरे जड़ियो। गोशाळो इक-इक नरक मझारो, ओ तो जासी दोय-दोय वारो॥ कुंडरीक चारित्र भांगो, नरक सातमी में तसु सांगो। जिहां उष्ण योनि पहिछाणी, तिहां शीत वेदन अति जाणी।। जिहां शीत योनि में जासं, तिहां उष्ण वेदन छै तासं॥ जिम निंब में ऊपनो कीड़ो, सुख माने तिहां सागीड़ो। तिण नै मेलै मधुर रस मायो, तो ओ दुःख लहै अधिकायो।।
तिम जेह नारकी नैं जोई, अति उष्ण वेदन छै सोई॥ १० तिण रे उत्पत्ति स्थान छै शीतं, तिण सूं उष्ण वेदन महाभीतं।
जेह नारकी नैं जाणी, शीत वेदन छै दुःख खाणी॥
ते तो ऊपनों, उष्ण स्थानक में, दुःख शीत तणो रकझक में। १३ ऊंदर ऊपना जे अग्नि मांयो, ते रति लहै अग्नि में तायो। १४ तिके शीत स्थानक जो आवै, तो वेदन दुःख अति पावै॥ १५ इण दृष्टान्ते जोई, नारकी शीत उष्ण योनि सोई।।
उष्ण योनि रे वेदन शीतं, शीत योनि रे उष्ण कहीतं ॥
एहवी वेदन नरक मझारो, जीव सही अनंती बारो।। १८ हिवै भिक्षु स्वाम पसायो, ओ तो चरण रत्न कर आयो।
तिण नैं यत्न करी राखीजै, गण शरणो नहीं छांडीजै॥ २० मरणांत कष्ट जो आवै, तो पिण गण में आराधक थावै ।।
गण शरणो नही छोड़े, तिके प्रीत मुनि सूं जो.।। २२ दःख नरक निगोद ना न्हाळी, मत कीजो आतम काळी।। २३ गणपति री आज्ञा बारो, उत्कृष्टो रुळे अनंत संसारो॥ २४ तिको इक-इक नरक मझारो, जाये अनंत-अनंती बारो।। २५ दुःख नरक थकी अधिकायो, अनंत गुणो निगोद रे मायो॥
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१. लय- ज्यारै सोहै केसरिया साडी।
१२६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था