Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नित्य प्रति नित्य प्रति करतो हो, टाळोकर ऊभो होय में,
गण रा अवगुण बोलण रा पचखांण। पंच पदा री साखै हो, जे सूंस लिया ते भांगिया,
बलि भांगी अनंत सिद्धां री आण। वीर थकां जे हूंता वर चवदै सहंस मुनीसरू,
अज्जिया हूंती बलि छत्तीस हजार। त्यारै सरिखा श्रद्धं हो, इम कहितो गण मांही सदा,
हिवै अवगुण बोलण हुवो हुंसियार।। अढी द्वीप' रा तस्कर हो, त्यां थी पिण टाळोकड बुरो,
इम नित्य कहतो हाजरी में कर जोड। तिणरी बतका' माने हो, तिण ने पिण जाणूं चोरटो,
हिवै काढण लागो गण मांहि खोड।। सूंस अनेकज भांग्या हो, टाळोकड गण थी नीकळी,
ते उदय हुवै जब इण भव माहै पाप। विविध प्रकारे पामै हो रोगादिक आपद आकरी,
व्यापै घणों सोग संताप।। परभव माहै पामैं हो, टाळोकड पीडा अति घणी,
बहु विध देवै परमाधामी मार। लाल गोळा कर घाले हो, टाळोकड रा मुख मझै,
कीया कर्म संभार - संभार उगणीसै सैंतीसै हो टाळोकड ओळखावियो,
फागुण सुदि चौथे नै भृगुवार । भिक्षु भारीमाल ऋषिराया हो, गण नायक तास प्रसाद थी,
जय गणि जोड़ी जयपुर शहर मझार।। सासण वीर जिणंद नों हो ए गण समुदाय भिक्षु तणों, तसु गण में रंग रत्ता, ते मुनि ने सुख आनंद घणो ||आकड़ी।।
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उगणास
२. बात
१. जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड, पुष्कर (अर्द्ध) ११६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था