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चरण रयण सुध राखो || ध्रुपदं ॥ अविचल सुख ने अभिलाखौ जी, वर सुमति सुधारस चाखौजी ॥ चारित्र निर्मळ पाळीजै, चारित्र रा जतन करीजै जी । चरण रयण सुध राखौ थे तो, आदरियो सिद्ध साखौजी ॥ त्रिविधे हिंस्या टाळीजै, पद-पद पर जयणां कीजै । सावज दानादि विरोधो, मन कर पिण छळ कपट झूठ नै टाळौ, दत्त गणपति
मति अनुमोदो ॥
आणा पाळौ ।
वर
सील सुरंगा || दुःख न्हाळौ ।
टाळौ,
मूर्छा थी महा
तजियै त्रिय विषय भुयंगा, सजियै परिग्रह नीं मूर्छा ए पांच रत्न महा भारी, ए तो चारित्र मुक्ति नेतारी ॥ चारित्र थी सहु दुख टळियै, बलि विविध विघ्न परजळियै । टळियै नरकादि निगोदं, एहवो चरण परम सुर वैमानिक सुख भारी, चारित्र सूं लहै उदारी । इन्द्रादिक पदवी अहमिंद चरण थी थावै ॥ तिहां असंख्यकाळ सुखरासो, ओ तो मुक्तिपुरी वट पछै सिवपुर वेग सिधावै, सुख आतमीक विलसावै ॥
सुप्रमोदं ॥
पावे,
वासो ।
वर्ष असंख |
पुळ- पुळ पर चरण सुअंक, सुर वर सुख सुर-सुख त्रिहुंकाळ संगहियै, इक पुळ सिव तुल्य न लहियै । पुद्गळ सुख प्यासा टाळो, चारित्र फळ नयण निहाळौ । अल्प परिषह थी मत त्रासौ, चारित्र
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ढाळ ९
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फळ नयण निहाळौ ॥
चरण फळ देखी दुःख भूळ, जब
जीवन कमल दल फूलै ।
काणी इक कवडी छोड़ावै, तसु जग नों राज पमावै ॥ विराणी, जग राज स्वर्ग शिव जाणी । चूको, थे तो गणपति शरण म मूको ॥ मंडो, गणि आणा नें मत छंडो। गमावै, दुःख नकर निगोद नां पावै ॥
कवडी सुख विषय एहवा चारित्र थी मत एहवा चरित्र में मन ( एहवो ) चारित्र रतन
१. लय : हरी बुरज पर बंगलो । २. ले जाने वाला ।
३. मार्गवर्ती विश्राम स्थल ।
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था