________________
ढाळ १५
و
مه
به
س
ه
م
रूडी भिक्षु आण में वहिये, आण अखंडित वर गुण मंडित पंडित तेह प्रवीण।
__ रूडी गणपति आण में वहिये ॥धुपदं॥ दीक्षा देइ नैं आण सूंपणो, लिखत गुणसठे लेख। लालपाल तिण सूं मूळ न राखै, बलि लल नवि देणी रेख॥ नेठाउरे पंच अज्जा उपरंतज, जो गणि नापै ताम। आडदोड मन मूळ न आणे, अधिक तणी तज हाम ॥ चउमासो उतरियां पाछै, कर दर्शण धर चूंप। आहार चिहूं विण भोगवियां, मुनि अज्जा पुस्तक सूंप। परचो राख्यां पामें ओळंभो, तेहथी रहिवो दूर। अधिक सचेत रह्यां थी थारो, दिन-दिन चढतो नूर॥ उष्ण आहार प्रमुख मर्यादा, पाळे रूडी रीत । पत्र लिखी गणपति में आपै, निर्मळ राखै नीत || परम प्रीत गणपति सूं पूरण, रीझावै दिल खोल। सासण अधिक दिढायां बाथै, च्यार तीर्थ में तोल।। टाळोकर में अधिक निखेधे, तज अवनीतां रो संग। आप तणों रागी पिण न करे, जिल्ला नैं जाण भुयंग ।। तन मन वयण कळा चतुराइ सूं, प्रसन्न करै गणनाथ। प्रसन्न थयां सुख इहभव परभव, बलि-बलि स्यों कहूं बात || श्रद्धा आचार नै सूत्र कल्प रा, बोल री मत कर तांण। गुरु तथा बुद्धिवंत कहै ते मानणो, लिखत पेताळीसै आण ॥ उगणीसै इकवीसै महासुदि, ग्यारस में चंद्रवार। गुरु अभिप्राय रह्यां सुख निश्चय, जयजश हरष अपार ||
م
م
م
م
१.लय : सुगुणा पाप पंक। २. झूठा आश्वासन । ३.साधारणतया।
४.ममत्व, अभिलाषा। ५. आज्ञा।
शिक्षा री चोपी : ढा० १५ : १०३