Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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दाळ १८
धर्म ना धोरी जी, सुगुरु सिष जोड़ी जी । होजी एतो भिक्षु ने भारीमाल, जिसा जसधारी जी ।
सासण सिणगारी जी ॥धुपदं ।। आण आराधै सुगुरु नी काइ, कार्य बिलंब रहीत। अंग चेष्टा प्रति ओळखै कांइ, ते सुगुणां सुविनीत।। बलि न हवै 'मुख नो अरी' कांइ, भ्यंतर बाह्य प्रशांत। आचारज नै आगलैं कांइ, सीखै अर्थ सुदांत ।। तन मन सूं सेवा करै कांइ, सासण रो सिणगार । च्यार तीरथ जाणै तसु, इण रे सुगुरु थकी अति प्यार।। परम प्रीत. सतगुरु थकी कांइ, त्रिहुं योगे करी तेम। साताकारी ए सही कांइ, गणपति जाणै एम।। गणपति में आराधियां कांइ, विनय करी विधविध। विनय करी ने सेवियां कांइ, विनय तणी समरिध । एहवा शिष्य सुविनीत ने कांइ, गणपति गण सिणगार। चरण पळावै निर्मळो कांइ, थेट उतारे पार।। आराधन विध-विध करी कांइ, संतोषै सुखकार । पभणै परिषद नै विषे कांइ, ए गण नों आधार ।। आचारज मोटा हुवै कांइ, वारू गुण ना जाण। मरण पंडित हुवै ज्यां लगै कांइ, तोड़े नहीं कर ताण ।। नवमें दसवैकालिके कांइ, कन्या नो दृष्टांत। जनक कन्या ने पाळ में कांइ, प्रवर मिळावै कंत।। तिम गुरु सिष सुवनीत नो काइ, प्रवर बधावै तोल।
पदवी जोग करी तसु कांइ, गणपति तिलक अमोल ।। ११ विनयवंत मुनिवर भणी, गुरु जाणै अति हितकार ।
झीणी रहस्य सिद्धांत नीं कांइ, तास धरावै सार।। १२ अधिक प्रीत वाळा तणों काइ, सतगुरु गण रे मांय। .. कुरब बधावै अति घणों काइ, विविध प्रकारे ताय॥
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१. लय-पायल वाली पदमनी। २. वाचाल।
३. अंतरंग। ४.दसवेआलियं ९।३।१३।
शिक्षा री चोपी : ढा० १८ : १०७