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ढाळ १२
'थे तो चतुर सीखो सुध चरचा रे, थे तो परहर देवो परचा | ए तो परचा आछा नांही रे, राखो समझ हिया रे मांही ॥ परचो राखै ते नर भोळा, त्यांरो जीव करै डाळाडोळा । परचा सूं ओळभो पावै, त्यांरी क्यां हीं शोभा नहि थावे ॥ परचा वाळो जो क्षेत्र भळावै, तो उ मन रळियायत परचा वाळे क्षैत्र नहीं मेलै, तो उ दाव कपट पछै आमण-दुमण थको जावै, पिण मन में बहू
थावै ।
रात दिवस जाए हींजरतां परचा वाला रो ध्यानज धरतां ॥
एहवा परचा रा फळ जिण रै परचा रो पड़ियो
जाणी, तिण नै स्वभावो, छूटण हिया मांहि, तो उ तुरत
परहरै उत्तम प्राणी । रो कठिन उपावो ॥
जबर समझ हुवै
देवै छिटकाइ ।
तिण रे पीत औरां सूं पूरी, गणपति सूं पीत
अधूरी ॥
परचा वाळा री भावना भावै, जाणै दरसण करवा कद आवै । आयां देख हियो अति हरखै, जाणै जौहरी नग नैं परखै ॥ परचा वाळा स्हामो नहीं जोवै, वळे नयण वयण नही मोवै । परचो छूटण रो एह उपायो, जय गणपति एम जणायो ॥ उगणीस वर्ष उगणीसै, मृगसर विद सातम दिवसे । प्रथम- मर्यादा दिन सुखदायो, परचा में जयजश ओळखायो ॥
१. लय-रस गिरधी हिलिया गटकै रे २. स्नेहात्मक परिचय |
३. प्रसन्न ।
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४. अनमना ।
५. याद में झूरते हुए ।
बहु खैले ॥
दुःख पावै ।
शिक्षा री चोपी : ढा० १२ :
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