Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
३६ संत सती चउमासा मांहि, चउत्थ' छठादि उदारी।
ते पिणं लिखियो पत्र वांचजे, सुरत राखजै भारी।। कारण आथण असण मंगायां, पंच विगय परिहारी। पत्र लिख्यौ वांचे वलि इमहिज, कारण नित पिंड आहारी।। अज्जा कोइक अधिक कठोरज, वचन बोलै अविचारी। लिख्यो वांचजे तसु दंड दीजै, पूछा कीजै सारी।। संवत उगणीसै नै दसके, स्वाम लिखत री सारी। प्रवरहाजरी-जय जस गणपति, कीधी अधिक उदारी।। नित्य हाजरी वांचै कै नही, पूछ करै निरधारी। तसु मुख आगल संत सती जे, सुणैक न सुणै सारी।। विहार कारण विन मुनि अज्जा, परठै असन' तिवारी। दूजे दिन तसु घृत नहि लेणो, लिख्यौ वांच सुविचारी।। जे गांम में अज्जा छै त्यां अन्य, अज्जा आयां सारी। तसु आज्ञा विन व्यंजण विगय, न लेणो लिख्यौ विचारी।। दीक्षा दै गुरु पे रहिवा रा, दै . परिणाम उतारी।
तिण नै बलि चारित्र देवा नी, आण म दिये लिगारी।। ___ ए गणपति अनुकूल अछै के, प्रतिकूल छै दुखकारी।
उंडी दृष्टि करी ओळखजै, सहज म गिणै लिगारी।। संत सति गणपति सूं अनुकूल, करब' बधारै भारी। दिन-२ अनुकूल अधिको वरतै, तास निरत दिलधारी।। गणपति नो प्रतिकूल छै तेहने, ओळख करे विचारी। कुरब वधावा लायक नहीं ए, जाणी तसु दुखकारी ।। आपस में जिल्लो कोई बांधे, ओलखजै तसु जारी।
तेहनें भेला तूं मत राखै, अवसर देख उदारी।। ४८ कटमी" बात करै सासण री, ते छै जनम बिगाड़ी।
तिणनै रूड़ी रीत ओळखजै, धिग् तिण रो जमवारी॥
१. उपवास २. दो दिन का तप ३. गण विशुद्धि के लिए आचार्य भिक्षु निर्मित मर्यादाओं के आधार पर बनाया गया शिक्षात्मक संकलन, जिसे सभी की
उपस्थिति में प्रतिदिन पढ़ा जाता था। ६० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
४. आहार ५. प्रतिष्ठा ६. अनुरक्ति ७. आलोचनात्मक