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ढाळ ६
दूहा
गणि मर्यादा लोपियां, इह भव फिट-फिट थाय। परभव में दुःख उपजै, वरणविये ते वाय॥ कांई घिग् २ जीवित धिग्र जीवित,ते शिव सुख किम चाखैजी
॥ध्रुपदं॥ आचारज नी आण लियां विन, रेशम आदिक राखै जी। ऊनूं सूतु और उपधि पिण, कपट करी नहीं दाखै जी। बलि मर्यादा कल्प लोप नैं, अधिक उपधि अभिलाखै। तीर्थंकर नों चोर कहीजे, सुगुरु-अदत जिन दाखै। खंड-वस्त्र नां वटका ते पिण, कल्प मांहि गिण लेणा। मापै नाहीं, मपावै नांही, (त्यांनै) किणविध कहियै सैणा। कपट करी ने वस्त्र पात्र ला, गुरु नैं नहीं दिखावै। अंसमात्र पिण अधिको राख्यां, परभव में पिछतावै।। लांबपणां नैं चोड़पणां में, वसतर अधिक रखावै। इह भव परभव फिट २ होवै, चिहं गति गोता खावै। इमज पात्र बलि राखै अधिका, गुरु ने नाही जणावै। सल्य सहित मर हुवै विराधक, आभियौगिक सुर थावै। दूध दही घृत आदि विगय, पिण मर्याद उपरंत खावै। सहल गिणी ने मापो न करै, लोळपणो चित ल्यावै॥ मर्यादा लोपै तसु अवगुण, गुरु ने नाहि जणावै। फिट-फिट होवै जनम विगोवै, ते परतीत गमावै।। दूजै दिन ने अर्थे औषधि, आणी आप रखावै। बलि दूजा दिन अर्थे अधिकी, बहिरी अन्य गृह ठावे।। अंजन-पूडी अर्क नी शीशी, प्रमुख धणी गृह दूरो। धणी आज्ञा सूं अन्य गृह मेलें, तजी कपट नै कूड़ो॥
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१. लय-इण स्वार्थ सिद्ध रे। २. टुकड़ो। ३. छोटी जाति के देव।
शिक्षा री चोपी : ढा०६ : ८५