Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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७
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९
१०
ढाळ : १
दूहा
गण
वृद्धि चाहो
तो नेठाउ' पंच
कोइ समणी नै
सुगणपति,
ते, अधिक म गणी, सूंपै
भणीं, तर्क न
सुगणपति, जे
चाहो
लेणा उरा, इण में
अज्जा, सूंपै
समणी संपद
सूपौ
अन्य अज्जा वा मुनि
गण
वृद्धि
सिख - सिखणी
गुण
अधिक गुणी मुनिवर
तसु कर दीख ।
ते अन्य नै तसु ईसको, नहीं
करखूं ए सीख । सोंपै तसु दीख ।
गणि
तथा द्रव्य क्षेत्रादिके, करै तास कोई ईसको,
ते अवनीत अलीक || त्रिण मुनि जे
अगवाण ।
द्रव्यादि
पिछाण ||
सिंघाड़ ।
करणी
सार ॥
गण वृद्धि चाहो सुगणपति, गाहा पणवीस बहुलपणै, बलि जिता दिवस अगवाण बण, विचरै नीं, व्यावच अन्य, तसु पेटे विख्यात । तिम करै, (पिण) संपति राखै हाथ ॥ मुनिवर कन्है, जो ईसको', करिवो
तेता दिवस गिलाण' तथा करावै कार्य
न लिखावै गाह ।
बलि गुण जाणै अधिक गुणी अन्य मुनि नै इमज गणी पासे बहु अज्जा नहीं
तसु
नहीं
राखणीं,
१. साधारणतया
२. शिष्य - शिष्या
३. गाथा - लिपिकरण का एक माप तेरा
पंथ श्रमण संघ की एक ऐसी पूंजी,
जो लिपिकरण सेवा आदि के द्वारा अर्जित की जाती है।
४. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव आदि को देखकर
सत्यां
करणी
कोइ
५. रुग्ण
६.
सेवा
७. बदले में
८. ईर्ष्या
रह्यां, एक साज रे
कारणीक
विण
हाथ ।
आथ ॥
सवाय ।
ताय ॥
दीक्षा
देह ।
अधिकेह ॥
सुराह ॥
मांय |
ताय ॥
गणपति - सिखावण: ५७